himachal assembly winter session: धर्मशाला में पांच जनवरी से शुरू हुआ 14वीं विधानसभा का पहला शीतकालीन सत्र शुक्रवार को समाप्त हो गया। पहला सत्र रही हंगामेदार रहा। सत्र में विपक्ष ने जहां कड़े तेवर दिखाने की कोशिश की थी वहीं, सरकार ने भी विपक्ष को करारा जवाब दिया। विपक्ष ने पूर्व सरकार के कार्यकाल में खुले संस्थानों को डिनोटिफाई करने का मुद्दा उठाया था। इस पर सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि पूर्व सरकार ने बिना बजट का प्रावधान किए इन संस्थानों को खोल दिया था।
वहीं, सत्र के दूसरे दिन कुलदीप पठानिया को हिमाचल विधानसभा का स्पीकर बनाया गया। स्पीकर कुलदीप पठानिया ने पक्ष और विपक्ष को साथ लेकर चलने का आश्वासन दिया। इसके अलावा विधानसभा सत्र में ओपीएस का मुद्दा भी छाया रहा। सरकार ने पहली कैबिनेट मीटिंग में ओपीएस को बहाल करने का आश्वासन सदन में दिया है। वहीं, पूर्व सरकार के समय खोल गए संस्थानों को डिनोटिफाई करने के विरोध में विपक्ष ने सत्र के पहले दिन ही हंगामा शुरू कर दिया था। इसके साथ ही इस मुद्दे को सत्र के आखिरी दिन नाराज विपक्ष ने सदन से वॉकआउट कर दिया।
शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को राज्यपाल के अभिभाषण पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा हुई। एक दिन पहले सदन में सरकार की ओर से राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के अभिभाषण को विपक्ष ने दिशाहीन करार देते हुए कहा था कि इसमें कोई विजन नहीं है। दूसरी ओर सत्तापक्ष ने सरकार के फैसलों का बचाव किया और कहा कि बीजेपी छह माह तक संयम रखे तथा सरकार की कार्यशैली को देखे।
सत्र के आखिरी दिन डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि BJP के कार्यकाल मे दी गई नौकरियों का आने वाले समय में पर्दाफ़ाश किया जाएगा। BJP के राज मे नौकरियों मे लूट मची हुई थी। BJP सरकार मे कर्मचारी आयोग में पर्चे जाते थे। BJP वालों को ढूंढ कर नौकरियां दी गईं है। उन्होंने कहा कि जब मंत्री बन जाएंगे, तो OPS भी लागू किया जाएगा और महिलाओं को हर माह 1,500 रुपए भी मिलेंगे।
मुकेश अग्निहोत्री ने विपक्ष के वॉकआउट पर कहा कि अगर इनके कच्चे चिट्ठे खोलना शुरू किए जाएं तो ये यहां बैठने का काबिल नहीं रहेंगे। इन्होंने सुबह से ही वॉकआउट का मन बना लिया था। वहीं, बीजेपी विधायक विपिन सिंह परमार ने कहा कि विस अध्यक्ष चैंबर में सुबह तय हुआ था कि राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर दोनों पक्षों के चार-चार लोग बोलेंगे। प्रतिपक्ष ने इन नियमों की पालना की, जबकि सत्तापक्ष के आला नेताओं ने प्रस्ताव पर बोलने के लिए पर्चियां विस अध्यक्ष तक पहुंचा दीं। कांग्रेस ने 25 दिन के कार्यकाल में संस्थानों को बंद कर जनता पर तानाशाही का चाबुक चलाया है।