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हरियाणा : भाजपा सरकार ना किसान की ना जवान की, ये सिर्फ धनवान की है-दीपेंद्र सिंह हुड्डा

दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक बार फिर भाजपा सरकार पर जमकर हमला बोला है।

Reported by:  PTC News Desk  Edited by:  Rahul Rana -- August 21st 2023 06:03 PM -- Updated: August 21st 2023 06:05 PM
हरियाणा : भाजपा सरकार ना किसान की ना जवान की, ये सिर्फ धनवान की है-दीपेंद्र सिंह हुड्डा

हरियाणा : भाजपा सरकार ना किसान की ना जवान की, ये सिर्फ धनवान की है-दीपेंद्र सिंह हुड्डा

ब्यूरो : देश के अन्नदाता पर थोपे गये तीन काले कृषि क़ानूनों का कड़वा सच अब भारत की जनता के सामने आ गया है। मशहूर पत्रकार मंच वेबसाइट ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ के खुलासे ने साबित कर दिया है कि भाजपा सरकार की सूट बूट की लूट की सनक 750 किसानों की हत्या की ज़िम्मेदार है। इस खुलासे से पता चलता है कि मोदी सरकार ने किसानों को "आंदोलनजीवी" क्यों बोला, क्योंकि वो उनके अन्याय और लूट के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे थे । देश के 62 करोड़ किसानों का भविष्य भाजपा सरकार के कहने पर, 3 काले क़ानून लाकर 14 चुनिंदा उद्योगपति और भाजपाई Ecosystem के नाकारा लोग तय कर देते हैं, क्योंकि किसानों की आय दोगुनी नहीं करनी थी, मित्र-काल में मित्रों की आय चौगुनी करनी थी। 

भाजपा सरकार ने चालबाज़ी से संस्थानों में अपना व्यक्ति बैठाकर, चंद अरबपति पूँजीपतियों को मुनाफ़ा कमवाया और अन्नदाता किसानों के हक़ छीनने का कुत्सित प्रयास किया।  केंद्र सरकार को उद्योगपतियों के ड्राफ्ट पर इतना ज्यादा भसोसा था कि इस बिल को संसद में लाने की बजाय उसने इसे अध्यादेश जारी करके लागू कर दिया। उस समय कोरोना काल चल रहा था और देश में कहीं किसी किसान संगठन ने ऐसी कोई डिमांड नहीं की थी, कहीं किसान आंदोलन नहीं हो रहा था बावजूद इसके अध्यादेश लाने की क्या जरुरत थी? 



कोरोना की आड़ में जिस ढंग से 3 कृषि कानूनों को लागू किया गया था उससे देश के किसान को षड्यंत्र की बू आ गयी। बरेली के बाज़ार में केवल झुमका नहीं गिरा था, बरेली की रैली में मोदी जी ने किसानों को ठगने का जुमला भी जड़ा था ।  फ़रवरी 2016 में उत्तर प्रदेश के बरेली की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री जी ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का जो वादा किया था, उसकी काली सच्चाई आज निकलकर आ रही है। कुंडली बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और देश के हर कोने से किसानों ने एक साल तक संघर्ष किया और इस सरकार ने 750 किसानों की बलि ली। भाजपा सरकार ने किसानों पर लाठियाँ बरसाई, आँसू गैस के गोले दागे, कंटीले तारों से उनका रास्ता रोका गया, यातनाएं दी गई और देशद्रोही, आतंकवादी तक कह कर उनको अपमानित किया गया। 

भाजपा सरकार कह रही है कि वो किसानों को इन तीन कृषि कानूनों के फायदे समझा नहीं पाई जबकि हकीकत ये है कि इन तीन कृषि कानूनों से होने वाले भयंकर नुकसान को किसान समझ गए। एक साल से ज्यादा समय तक चले शांतिपूर्ण संघर्ष और 750 किसानों की शहादत के बाद आखिरकार इस सरकार को ये तीनों काले कानून वापस लेने ही पड़े।

इसके बाद से ही बीजेपी सरकार मन ही मन किसानों को अपना दुश्मन मानने लगी। बीजेपी सरकार जो भी काम करती है उसमें द्वेष भावना से किसानों की उपेक्षा करती है। लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का जो नारा दिया था भाजपा सरकार बिल्कुल उसके विपरीत आचरण कर रही है। आज साबित हो गया है कि भाजपा सरकार न किसान की है न जवान की है, ये सिर्फ धनवान की है। 

सरकार ने किसान आंदोलन और देश के किसान के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है। एक साल तक चले किसान आंदोलन के दौरान 9 दिसंबर, 2021 को किसान संगठनों और सरकार के बीच MSP कमेटी गठित करने का जो समझौता हुआ उससे भी अब तक लागू नहीं किया गया है। सरकार का किसानों के साथ जो समझौता हुआ था वो भी किसान के साथ एक विश्वासघात साबित हुआ और इस सन्दर्भ में जो कमेटी गठित करने की बात हुई थी उसमें भी किसान संगठनों को कोई तवज्जो नहीं दी गई, अपितु कमेटी में कई नाम ऐसे डाल दिए जो किसानों के खिलाफ बयानबाजी करते थे और तीनों कृषि कानूनों की वकालत करते थे।  

भाजपा के Ecosystem से जुड़े एक NRI उद्योगपति शरद मराठे ने नीति आयोग के प्रमुख राजीव कुमार को एक प्रस्ताव भेजा। नीति आयोग को लाखों लोग कुछ न कुछ लिखकर भेजते होंगे, पर राजीव कुमार जी ने श्री शरद मराठे की ही चिट्ठी पर अमल करते हुए, किसानों की आय डबल करने की आड़ में, एक मीटिंग बुलाई और कृषि सेक्टर को प्राइवेट हाथों में देने का क़दम उठाया। शरद मराठे कोई कृषि विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन भाजपा के क़रीबी जरूर हैं। जाहिर है प्रधानमंत्री की अनुमति से ही उन्होंने नीति आयोग को अपना Privatisation प्लान समझाया होगा, अपने लिए एक "Mini Secretariat" और Travel जैसी सुविधाओं की मांग भी की, जो नीति आयोग ने तुरंत मंज़ूर कर दी। आख़िर शरद मराठे कौन थे, जिनके कहने पर पूरा नीति आयोग जिसके अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री होते हैं, हरक़त में आ गया।

शरद मराठे ने 16 लोगों की एक High Level Task Force के गठन का सुझाव दिया, जिसमें खुद को मिलाकर उन्होंने 11 लोगों को मनोनीत किया, वो भी नीति आयोग ने मान लिया।  इस High Level Task Force में मोदी सरकार के नजदीकी उद्योगपति अडानी समूह के प्रतिनिधि भी थे , जिसने Essential Commodities Act को ख़त्म करने का प्रस्ताव रखा, जिसे भाजपा सरकार ने 3 काले क़ानूनों में से 1 में तुरंत मान लिया। गौरतलब है कि 1955 बने Essential Commodities Act  के तहत सरकार बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने और जमाखोरी पर अंकुश लगाकर खाद्य भंडार को विनियमित करने का उपाय करती है। बिचौलिए अक्सर बड़ी मात्रा में अनाज जमा करते हैं और जब कीमतें बढ़ती हैं तो अनाज की कमी का फायदा उठाकर उसे बेचकर भारी मुनाफा कमाते हैं। भाजपा सरकार के करीबी इसी Essential Commodities Act  को ख़त्म करना चाहते थे जिसे 3 कृषि कानून लाकर ख़त्म भी कर दिया गया था।  

भाजपा सरकार ने अप्रैल 2016 में, पीएम की घोषणा के मद्देनज़र, विवरण तैयार करने के लिए श्री अशोक दलवई की अध्यक्षता में एक Inter-Ministerial Committee का गठन किया। यह समिति अंततः 14 Volumes की report प्रस्तुत करती है। लेकिन इस 14 Volumes की report को देने से पहले, श्री मराठे द्वारा सुझाई गई High Level Task Force बैठक करती है। Inter-Ministerial Committee के विपरीत, जिसने हितधारकों की एक विस्तृत श्रृंखला से परामर्श किया, जिसमें कृषि कार्यकर्ता भी शामिल थे, मराठे-कल्पित Task Force द्वारा मुख्य रूप से बड़े कॉर्पोरेट घरानों के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया गया।  

सितंबर 2018 में, दलवई समिति ने अपना अंतिम खंड प्रस्तुत किया और इसकी प्रमुख सिफारिशों में से एक में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन का सुझाव देते हुए किसानों के लिए सुरक्षा उपाय शामिल थे: "यह अनुशंसा की जाती है कि निजी संगठनों को स्टॉक सीमा से सशर्त छूट का विकल्प दिया जाए जो सीधे किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य दरों पर स्टॉक खरीदते हैं, साथ ही परिवर्तनीय निर्यात सीमाओं से भी छूट दी जाती है"

इस बीच, अप्रैल 2018 तक, अडानी समूह जैसे कॉर्पोरेट घराने पहले से ही अपने काम में जुट गए और कॉर्पोरेट प्रतिनिधियों से भरी नीति आयोग की एक अन्य समिति को कृषि वस्तुओं की जमाखोरी पर लगे प्रतिबंधों को पूरी तरह से हटाने की सिफारिशें करने लगे। 2019 के चुनावों के बाद, भाजपा सरकार ने कोरोना महामारी के बीच जून 2020 में 3 काले कृषि अध्यादेश पारित कर विधेयक पेश किया, जिसे सितंबर 2020 में कानून के रूप में पेश किया गया, जिसमें भाजपा सरकार की अपनी Inter-Ministerial Committee द्वारा सुझाए गए किसानों के लिए सुरक्षा उपाय हटा दिए।

देश और हमारे 62 करोड़ किसान भाई-बहन जानना चाहते हैं 

1. जब दलवई कमेटी की 3000 पेज की रिपोर्ट मौज़ूद थी, तो नियमों को दरकिनार कर भाजपा सरकार ने एक गैर-विशेषज्ञ NRI उद्योगपति की बात क्यों सुनी और High Level Task Force क्यों बनाई? क्या वो किसानों के अधिकारों को कुचलने के लिए बनाई गई थी, ताकि चुनिंदा अरबपति मुनाफ़ा कमा सकें?

2.आख़िर भाजपा सरकार को चुनिंदा पूंजीपतियों का फ़ायदा कराना इतना क्यों ज़रुरी है, जिसके चलते उन्होंने देश की पूरी खाद्य व्यवस्था और कृषि सेक्टर को तार-तार करने की साज़िश रची ?

3.देश का जो अन्नदाता 140 करोड़ भारतीय नागरिकों का पेट भरता है उसके साथ ऐसा ये सरकार ऐसा शत्रुतापूर्ण व्यवहार क्यों कर रही है?  

4.किसानों को गाड़ी के नीचे कुचलवाने वाली भाजपा सरकार ने किसानों को Cost 50% MSP नहीं दिया, शहीद 750 किसानों को कोई मुआवज़ा भी नहीं दिया और ना ही उनके लिए संसद में एक मिनट का मौन रखा। इतना ही नहीं, उनके ख़िलाफ़ दर्ज केस भी वापस नहीं हुए। अब इन सबकी वजह देश जान चुका है। सिर्फ़ इसीलिए क्योंकि उनकी पूरी साज़िश किसान विरोधी मानसिकता से ग्रसित है।  

- PTC NEWS

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