'किसी मंत्री के बयान को नहीं माना जा सकता सरकार का बयान, जनप्रतिनिधियों के बोलने की आजादी पर अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं'
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी लगाने से इनकार कर दिया है। मंगलवार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सुनवाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी आपत्तिजनक बयान के लिए उसे जारी करने वाले मंत्री को ही जिम्मेदार माना जाना चाहिए। इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं होनी चाहिए।
अभिव्यक्ति की आजादी पांच जजों की बेंच ने कहा कि राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों/विधायकों औऱ उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं है। इसके अलावा किसी मंत्री के दिए गए बयान को सरकार का बयान नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि 'सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद किसी मंत्री के दिए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, फिर भले ही वह बयान राज्य के किसी मामले को लेकर हो या सरकार की रक्षा करने वाला हो।' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत निर्धारित प्रतिबंधों के अलावा कोई भी अतिरिक्त प्रतिबंध नागरिक पर नहीं लगाया जा सकता है।
गौरतलब है कि यूपी में समाजवादी पार्टी के नेता ने अखिलेश सरकार में मंत्री रहने के दौरान बुलंदशहर में सामूहिक दुष्कर्म को लेकर विवादित बयान दिया था। दरअसल बुलंदशहर के नजदीक हाईवे पर जुलाई 2016 में एक महिला और उसकी बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। आजम खान ने इस सामूहिक दुष्कर्म को राजनीतिक साजिश करार दिया था। इसके बाद महिला के पति ने अदालत ने आजम खान के बयान के खिलाफ याचिका दायर की थी।
- PTC NEWS