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नई दिल्ली। हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद कुमारी सैलजा ने नई दिल्ली में प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि सतलुज यमुना लिंक नहर का पानी हरियाणा का हक है और एसवाईएल पर हरियाणा प्रदेश के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगाई है। पंजाब के राजनीतिक दलों द्वारा हरियाणा प्रदेश को पानी ना दिए जाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना है।
एसवाईएल के मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस व प्रदेशवासियों ने लंबा संघर्ष किया है और अदालतों में लड़ाई लड़ी हैं। हम अपने संवैधानिक अधिकार लेने में पीछे नहीं हटेंगे l सभी प्रदेशवासियों का यह सपना हमें हकीकत में तब्दील करना है। अपना अधिकार लेने के लिए हम दृढ़ संकल्पित हैं, जनता के हितों की लड़ाई हम पूरी मजबूती से लड़ेंगे।
SYL का पानी हरियाणा का हक, अधिकार लेने में पीछे नहीं हटेंगे: कुमारी सैलजा
सैलजा ने कहा कि वर्ष 1981 में पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौजूदगी में एसवाईएल के निर्माण का समझौता किया था। वर्ष 1982 में इंदिरा गांधी ने पटियाला के गांव कपूरी में नहर का निर्माण का शुभारंभ किया था। चाहे हरियाणा बनाने की बात हो या हरियाणा को पानी का अधिकार देने की बात हो, यह सब इंदिरा गांधी की ही देन है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की सरकारों ने एसवाईएल की लड़ाई लड़ी है, जबकि अन्य राजनीतिक दलों ने सिर्फ इस पर राजनीति की है। उस समय की लोकदल और भाजपा ने तो ईराड़ी कमीशन का बायकॉट किया था। परंतु बार-बार हरियाणा के हिस्से का पानी मिलने में देरी होती रही, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 को पंजाब को निर्देश दिए कि या तो एक वर्ष में एसवाईएल नहर बनवाए या फिर इसका कार्य केंद्र के हवाले करे। सुप्रीम कोर्ट का वर्ष 2002 और वर्ष 2004 का एसवाईएल का हरियाणा के हक में आया फैसला लागू हो गया।
SYL का पानी हरियाणा का हक, अधिकार लेने में पीछे नहीं हटेंगे: कुमारी सैलजा
इसके बाद भी जब हरियाणा प्रदेश को उसके हक़ का पानी नहीं मिला तो वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय लिया और एसवाईएल निर्माण की जिम्मेदारी का स्पष्ट आदेश केंद्र सरकार को दिया गया। वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक और ऐतिहासिक निर्णय में पंजाब सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में एसवाईएल निर्माण के निर्णय को स्थगित करने की अपील की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि एसवाईएल नहर निर्माण के अदालत के निर्णय को हर हालत में लागू किया जाए।
वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोनों राज्यों को अपने अधिकारियों की कमेटी बनाकर मामला सुलझाने के निर्देश देने के साथ ही साफ कर दिया गया कि अगर दोनों राज्य आपसी सहमति से नहर का निर्माण नहीं करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा।
एक आकंड़े के मुताबिक हरियाणा में करीब 40 लाख हैक्टयेर कृषि योग्य जमीन है, इसमें 33 प्रतिशत भूमि की सिंचाई नहरी पानी से, 50 प्रतिशत की सिंचाई टयूबवलों के माध्यम से तथा 17 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि की सिंचाई बरसात के पानी से होती है। जबकि हरियाणा प्रदेश में 30 लाख हैक्टयेर भूमि के नहरों का जाल बिछा हुआ है। लेकिन पानी नहीं होने से प्रदेश की नहरें सूखी पड़ी रहती है। आज हरियाणा बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहा है।
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