संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को लिखा पत्र, लगाए कई आरोप
नई दिल्ली। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव व सीईओ पीएम किसान विवेक अग्रवाल को पत्र लिख संयुक्त किसान मोर्चा ने कई आरोप लगाए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने आरोप लगाया कि भारत सरकार पूरे देश के किसानों के शांतिपूर्ण, जमीनी और कानून सम्मत संघर्ष को अलगाववादियों और चरमपंथियों के रूप में पेश करने, संप्रदायवादी और क्षेत्रीय रंग में रंगने और बेतुका व तर्कहीन शक्ल में चित्रित करने की कोशिश कर रही है। किसान नेताओं के मुताबिक सच यह है कि किसानों ने साफगोई से वार्ता की है, लेकिन सरकार की तरफ से इस वार्ता में तिकड़म और चालाकी का सहारा लिया गया है। [caption id="attachment_460580" align="aligncenter" width="700"] संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को लिखा पत्र, लगाए कई आरोप[/caption] संयुक्त किसान मोर्चा ने पत्र में लिखा कि आप प्रदर्शनकारी किसानों से ऐसे निपट रहे हैं मानो वे भारत के संकटग्रस्त नागरिकों का समूह ना होकर सरकार के राजनीतिक प्रतिद्वंदी हैं! सरकार का यह रवैया किसानों को अपने अस्तित्व की रक्षा की खातिर अपना विरोध प्रदर्शन तेज करने के लिए मजबूर कर रहा है। यह भी पढ़ें- अध्यापक पात्रता परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी, दो व तीन जनवरी को होगा एग्जाम [caption id="attachment_460581" align="aligncenter" width="977"] संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को लिखा पत्र, लगाए कई आरोप[/caption] पत्र में संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि हम हैरान हैं कि सरकार अब भी इन तीन कानूनों को निरस्त करने के हमारे तर्क समझ नहीं पा रही है। किसानों के प्रतिनिधियों ने तीन केंद्रीय कृषि अधिनियमों की नीतिगत दिशा, दृष्टिकोण, मूल उद्देश्यों और संवैधानिकता के संबंध में बुनियादी मुद्दों को उठाते हुए इन्हें निरस्त करने की मांग की है। लेकिन सरकार ने चालाकी से इन बुनियादी आपत्तियों को महज कुछ संशोधनों की मांग के रूप में पलट कर पेश करना चाहा है। हमारी कई दौर की वार्ता के दौरान सरकार को स्पष्ट रूप से बताया गया कि ऐसे संशोधन हमें स्वीकार्य नहीं हैं। यह भी पढ़ें- बिजली दरों में बढ़ोत्तरी पर सुरजेवाला ने खट्टर सरकार को घेरा "5 दिसंबर 2020 को सरकार के संशोधन के मौखिक प्रस्ताव खारिज करने के बाद हमें बताया गया कि सरकार के साथ "ऊपर" चर्चा के बाद “ठोस प्रस्तावों“ को हमारे साथ साझा किया जाएगा। हमें आज तक इस तरह के कोई नए ठोस प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुए हैं। आप जानते हैं कि आपने 9 दिसंबर 2020 को जो लिखित प्रस्ताव भेजे थे वो 5 दिसंबर की वार्ता में दिए गए उन मौखिक प्रस्तावों का दोहराव भर है जिन्हें हम पहले ही खारिज कर चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि आपके प्रस्ताव में अनिवार्य वस्तु (संशोधन) कानून का जिक्र भी नहीं है। हम फिर साफ कर दें कि हम इस कानूनों में संशोधन की मांग नहीं कर रहे, बल्कि इन्हें पूरी तरह निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।" [caption id="attachment_460583" align="aligncenter" width="750"] संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को लिखा पत्र, लगाए कई आरोप[/caption] पत्र में लिखा गया है कि इन तीनों कानूनों के अलावा आपने न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जो प्रस्ताव भेजा है, उसमे ऐसा कोई भी स्पष्ट प्रस्ताव नहीं है जिसका जवाब दिया जाय। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आप "वर्तमान खरीद प्रणाली से संबंधित लिखित आश्वासन" का प्रस्ताव रख रहे हैं, जबकि किसान संगठन राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिश के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (सी2+50%) पर सभी फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। जब आप ऐसे कानून का ड्राफ्ट भेजेंगे तो हम बिना विलंब के उसका विस्तृत जवाब देंगे। इसी तरह विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक के ड्राफ्ट पर आपका प्रस्ताव अस्पष्ट है और बिजली बिल भुगतान तक सीमित है। जब तब आप इस ड्राफ्ट में क्रॉस सबसिडी को बंद करने के प्रावधान के बारे में अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं करते, तब तक इस पर जवाब देना निरर्थक है। वायु गुणवत्ता अधिनियम पर "उचित प्रतिक्रिया" का आश्वासन इतना खोखला है कि उसका जवाब देना हास्यास्पद होगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि हम आपको आश्वस्त करना चाहते हैं कि प्रदर्शनकारी किसान और किसान संगठन सरकार से वार्ता के लिए तैयार है और इंतजार कर रहे हैं कि सरकार कब खुले मन, खुले दिमाग और साफ नीयत से इस वार्ता की आगे बढ़ाए। आपसे आग्रह है कि आप निरर्थक संशोधनों के खारिज प्रस्तावों को दोहराने की बजाए कोई ठोस प्रस्ताव लिखित रूप में भेजें ताकि उसे एजेंडा बनाकर जल्द से जल्द वार्ता के सिलसिले को दोबारा शुरू किया जा सके।