शिमला स्मार्ट सिटी या फिर आयरन सिटी, क्या आबादी का बोझ ढोते -ढोते थक चुकी पहाड़ों की रानी? क्यों लगा शिमला की सुंदरता को ग्रहण?
पराक्रम चन्द : शिमला: पहाड़ों की रानी राजधानी शिमला का इतिहास गोरखाओं से लेकर ब्रिटिश हुकूमत से जुड़ा हुआ है। अंग्रेजों ने 1864 में पहाड़ों की रानी शिमला को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। अंग्रेजों द्वारा 25000 लोगों के लिए बसाया गया ये शहर अब अढ़ाई लाख से ज्यादा लोगों का शहर बन गया है। पर्यटक सीजन में यह संख्या दुगनी भी हो जाती है।
जनता के अतिरिक्त बोझ ढोते -ढोते पहाड़ों की रानी शिमला थक चुकी है। इस बरसात ने तो पहाड़ों की रानी शिमला का स्वरूप ही कुरूप कर दिया है। सेंकडो पेड़ बरसात की भेंट चढ़ चुके है। सैंकड़ो को मानव जीवन पर खतरे के चलते काटा जा रहा है। शिमला में ही पले बड़े देशबंधु सूद गुस्से में बताते है की विजन की कमी के चलते शासन व प्रसाशन ने शिमला का रूप कुरूप बना दिया।
राजधानी शिमला के लिए केंद्र ने कई योजनाएं दी। फिर चाहे जे एन यू आर एम हो, अमृत मिशन हो, या फिर स्मार्ट सिटी, शिमला के हिस्से इन योजनाओं का करोड़ों रुपया आया। लेकिन विज़न व दूर दृष्टि की कमी के चलते स्मार्ट सिटी को बदनुमा दाग ही मिले। जो भी पैसा शिमला के विकास के लिए आया वह लोहा लगाने, पत्थरों को उखाड़ कर टाइल लगाने, टाइल उखाड़ कर संगमरमर लगाने और डंगो पर ही खर्च किया जाता रहा है।
स्मार्ट सिटी बनाने के लिए आया पैसा शिमला को आयरन सिटी के रूप में बदलने पर लगाया गया। सड़कों के किनारे भारी-भरकम लोहा लगा दिया गया है। फुटब्रिज लोहे के बना दिए गए। पार्किंग भी लोहे के ऊपर ही बना दी गई है। दुकानें तक लोहे पर खड़ी कर दी गई हैं। कुछ वर्षों पहले शिमला में लकड़ी के फुटपाथ हुआ करते थे। उनको भी लोहे में तब्दील कर दिया गया है और लोहा भी भारी भरकम लगाया गया। शायद ठेकेदारी प्रथा के आगे व्यवस्था विज़न सब कुछ फेल है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि स्मार्ट सिटी का पैसा शिमला को आयरन सिटी बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया।
वैसे भी शिमला की खूबसूरती यहां का प्राकृतिक सौंदर्य है। यहाँ के गगनचुंबी देवदार के पेड़, ऊंची नीची ढलानधार पहाड़ियां, पल-पल बदलता शिमला का मौसम, यहाँ के धार्मिक स्थल पहाड़ों की रानी शिमला की खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं। इसी खूबसूरती को देखने के लिए देश विदेश के पर्यटक शिमला की ओर खींचे चले आते हैं। जब ये पेड़ व खूबसूरती ही नहीं रहेगी तो शिमला किसको पंसद आयेगा। लेकिन अब जिस तरह से शिमला में लोहा नज़र आ रहा है ऐसा न हो कि शिमला शहर लोहे के भार तले दब जाए?
देखकर महाभारत काल की याद आती है। धृतराष्ट्र तो अंधा ही था लेकिन गांधारी ने भी आंखों पर पट्टी बांधकर रखी थी। जब गंधारी ने आंखों से पट्टी खोली तो अपने पुत्र को लोहे का बना दिया। बावजूद इसके भी वह कुल के विनाश को नहीं बचा पाई और दुर्योधन भी मौत को प्राप्त हो गया। नगर निगम शिमला की हालत भी कंधारी जैसी ही है।
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