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क्यों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे परंपरागत घराट, हिमाचल के हर गांव में आटे पीसने का यही घराट हुआ करते थे जरिया

हिमाचल में कभी घराट ही आटा पीसने का मुख्य जरिया हुआ करते थे। शायद ही कोई ऐसा गांव होता होगा जहां घराट ना होता हो।

Reported by:  PTC News Desk  Edited by:  Rahul Rana -- August 31st 2023 01:05 PM
क्यों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे परंपरागत घराट, हिमाचल के हर गांव में आटे पीसने का यही घराट हुआ करते थे जरिया

क्यों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे परंपरागत घराट, हिमाचल के हर गांव में आटे पीसने का यही घराट हुआ करते थे जरिया

पराक्रम चन्द : शिमला:  हिमाचल में कभी घराट ही आटा पीसने का मुख्य जरिया हुआ करते थे। शायद ही कोई ऐसा गाँव होता होगा जहाँ घराट ना होता हो। लेकिन आधुनिकता की चकाचोंध में घराट संस्कृति अंतिम सांसें गिन रही है। आटा पीसने के सैकड़ों घराट (पनचक्की) उजड़ चुके हैं। जो बचे हैं, वे अधिकतर समय बंद रहते हैं या फ़िर लोग वहाँ आटा पीसवाने नही आते है। घराटों के उजड़ने का सबसे बड़ा कारण आधुनिकता की दौड़, बेतहाशा बिजली परियोजनाएं और गेंहू -मक्की व अन्य फसलों के प्रति लोगों की उदासीनता है।


घराट किसी खड्ड या नाले के किनारे कूहल से निकाले पानी की ग्रेविटी से चलते हैं। कई जगह पानी की कमी से भी घराट बन्द हो गए। चट्टानों से काटकर बनाए गए इसके पहिये आटे को पीसते हैं। लकड़ी या लोहे की बड़ी-बड़ी फिरकियां पानी के वेग से घूमते हैं और आटा पिसता है। घराटों में खूब महीन आटा पीसा जाता है। इससे बनी रोटियों का स्वाद भी चक्की के आटे से अलग होता है। इसे पौष्टिक माना जाता है। 

हालांकि बिजली से चलने वाली चक्की में भी दो चक्के ही आटे को पीसते हैं। लेकिन हिमाचल के लोग इलेक्ट्रिक चक्की में पीसे आटे के बजाय परंपरागत घराट में हुई पिसाई को पहले खूब पसंद करते रहे हैं। यानी कि इलेक्ट्रिक चक्की के आटे में वह बात कहाँ जो घराट के पीसे आटे में होती है। 

- PTC NEWS

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