जानिए क्यों 16 जुलाई 1939 को शिमला के धामी से फूंका गया था आज़ादी का बिगुल

ब्रिटानिया हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ 16 जुलाई 1939 को शिमला के धामी से आज़ादी का बिगुल फूंका गया था ।

By  Rahul Rana March 19th 2023 12:31 PM

ब्यूरो: भारत की आज़ादी के आंदोलन में शिमला के धामी गोलीकांड का भी अहम स्थान है। ब्रिटानिया हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ धामी के लोगों ने आंदोलन का जो बिगुल फूंका था। उसकी गूंज समूचे भारत में सुनाई दी थी। 16 जुलाई 1939 को धामी में प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन रियासत के राजा के खि़लाफ़ आज़ादी की जंग का आगाज़ कर दिया था। शिमला से भागमल सोहटा और पंडित सीताराम शर्मा के नेतृत्व में हजारों लोगों ने राजमहल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। भीड़ बेकाबू हो गई व पथराव शुरू हो गया। 

ऐसा कहा जाता है कि बेकाबू भीड़ पर राजा के सिपाहियों ने लाठीचार्ज कर दिया और गोलियां दागना शुरू कर दी। गोलीबारी में दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि दो अन्य लोगों ने उपचार के लिए ले जाते वक्त रास्ते में ही दम तोड़ दिया। धामी गोलीकांड से पूरे देश में असंतोष फैल गया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पंजाब के मशहूर वकील दुनी चंद की अध्यक्षता में गोलीकांड की जांच के लिए एक समिति का गठन किया। लेकिन राजा धामी व अंग्रेज सरकार ने मिलकर प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां, उनके सामान की कुर्की और देश निकाला जैसे आदेश पारित कर आंदोलन को कुचलने की कोशिश की। 

जिससे लोगों में राजा के खि़लाफ़ ओर अधिक आक्रोश बढ़ गया। राजा धामी ने ब्रिटिश आर्मी की एक टुकड़ी को मंगवाकर आंदोलनकारियों के घरों को सील करवा दिया। बाबजूद इसके आज़ादी के परवानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाए थे। आखि़रकार 15 अगस्त 1947 को भारत गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हुआ। आज जब भी स्वतंत्रता संग्राम का ज़िक्र आता है तो धामी गोली कांड को भी याद किया जाता है। 

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