HP News: क्या हिमाचल को बड़ी त्रासदी का इंतजार, सुधरेंगे या बड़ी आपदा को देंगे न्यौता
ब्यूरो, पराक्रम चन्दः विश्व प्रसिद्ध रोहतांग सुरंग भले ही लाहौल-स्पीति के लोगों के लिए बड़ी सौगात लेकर आई है और इस सुरंग ने कबायली क्षेत्र के पुराने अलगाव को कम करने में अहम भूमिका अदा की है। लेकिन इस खूबसूरत घाटी में बढ़ती भीड़ ग्लेशियरों, प्राकृतिक संसाधनों, वन्यजीवों व नदियों के दोहन की सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है।
क्षेत्र में 16 से अधिक मेगा विद्युत परियोजनाओं को निजी कंपनियों को आवंटित किया गया है। इनके काम से पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन के साथ जैव विविधता को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। हालाँकि लाहौल-स्पीति और किन्नौर में लगातार हो रहे भूस्खलन बाढ़ के चलते परियोजनाओं के खिलाफ़ आवाजें जोर पकड़ने पकड़ने लगी है। छोटे से मानव लालच के लिए पहाड़ खतरे में है।
ये परियोजनाएं पड़ने वाली हैं भारी
तंदी (104 मेगावाट), रशिल (102 मेगावाट), बर्दांग (126 मेगावाट), मियार (90 मेगावाट), सेलि (400-मेगावाट) और जिस्पा (300 मेगावाट) जैसी परियोजनाएं इस क्षेत्र के लिए भारी पड़ने वाली हैं। क्योंकि बड़ी मशीनरी, ब्लास्टिंग और बांध का काम दो पवित्र नदियों-चंद्रा व भागा में चल रहा है।
नदियों के बेसिनों का किया दौरा
हालांकि प्रमुख पर्यावरण समूहों और गैर सरकारी संगठनों ने उत्तराखंड जैसे पर्यावरणीय खतरों के बारे में अपनी आशंकाएं जाहिर करते हुए ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्र, विशेष रूप से सतलुज, रावी, ब्यास और चिनाब के बेसिनों का दौरा किया है। अभय शुक्ला समिति ने 2010 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, अभय शुक्ला तत्कालीन सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) थे, ने उच्च न्यायालय की हरीत पीठ द्वारा गठित एक सदस्यीय समिति की अध्यक्षता की, जिसने घाटी में आने वाली मेगा हाइडल परियोजनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया और आपदाओं को रोकने के संभावित उपाय सुझाए थे। अपनी 69 पृष्ठ की रिपोर्ट में शुक्ला कमेटी ने ऊंचाई वाली घाटियों में आने वाली परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी, विशेष रूप से रावी, चिनाब और सतलुज के बेसिन-तीन पर, जो तबाह हो रही है।
परियोजनाओं से अनहोनी आपदा का खतरा
11 जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव से चंबा जिले में रावी नदी कैसे गायब हो जाती है। इस बात का महत्वपूर्ण अवलोकन किया व इसके गायब होने पर भी सवाल उठाए गए। नदी की लगभग 70 किमी की दूरी पर, जिस पर चार मेगा हाइडल परियोजनाएं चमेरा- II, चमेरा- III, कुठेर और बाजोली-होली स्वीकृत हैं, सुरंगों के माध्यम से पानी अपने मूल पर प्रवाहित नहीं होगा। इससे परियोजनाओं से एक अनहोनी आपदा की आशंका हमेशा बनी रहती है। नदी केवल पानी का बहाव नहीं है, ये ऐसी जीवन दायिनी धारा है, जो मानव, जानवरों और समृद्ध जलीय जीवन को बनाए रखता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन की गई अधिकांश परियोजनाएं 15% के निर्वहन मानदंडों का पालन नहीं करती हैं। हालांकि जुलाई 2010 की ये रिपोर्ट दुर्भाग्य से कभी लागू नहीं की गई।
ग्लोबल वार्मिंग के साथ ग्लेशियर आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) अपरिहार्य हैं। हिमाचल में 500 वर्ग मीटर और उससे अधिक आकार की 958 ग्लेशियल झीलें हैं। ये आंकड़ा स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की एक रिपोर्ट में है। हिमाचल प्रदेश में 27436 मेगावाट जलविद्युत क्षमता है, जिसमें से 24000 मेगावाट का दोहन करने की योजना बनाई है। 20,900 मेगावाट से अधिक परियोजनाओं को आवंटित किया जा चुका है, जिसमें से 10,519 मेगावाट का काम कमीशन किया जा चुका है।
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