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यहां जानें कुल्लवी टोपी की कहानी, दीनानाथ भारद्वाज ने कैसे दिलाई कुल्लवी टोपी को पहचान?

कुल्लवी टोपी जिसे हिमाचली टोपी भी कहा जाता है। इस टोपी ने देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाई है।

Reported by:  PTC News Desk  Edited by:  Rahul Rana -- July 31st 2023 01:07 PM
यहां जानें कुल्लवी टोपी की कहानी, दीनानाथ भारद्वाज ने कैसे दिलाई कुल्लवी टोपी को पहचान?

यहां जानें कुल्लवी टोपी की कहानी, दीनानाथ भारद्वाज ने कैसे दिलाई कुल्लवी टोपी को पहचान?

ब्यूरो : क्या आप जानते है कि कुल्लवी टोपी कैसे व कब से शुरू हुई? कुल्लवी टोपी जिसे हिमाचली टोपी भी कहा जाता है। इस टोपी ने देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाई है। यदि ये टोपी किसी के सिर पर सजी है तो दुर से ही पता लगा जाता है की ये हिमाचली टोपी है। प्रधानमंत्री तक इस टोपी के कायल हैं। इस टोपी को तो सभी जानते-पहचान हैं। लेकिन बहुत कम लोग होंगे जो ये जानते हैं कि इस टोपी को  पहचान दिलवाने वाला स्वर्गीय दीनानाथ भारद्वाज थे।

देश की आजादी से पहले 1942 से दीनानाथ भारद्वाज ढालपुर कुल्लू में नमदे बनाने की दुकान किया करते थे जो 1962 तक इसी व्यवसाय से जुड़े रहे। उनका बनाया निमदा उस समय 9-10 रूपये में बिकता था। ये निमदे  विदेशी व अमीर लोग ही खरीदा करते थे। एक बार किसी को बेचा हुआ निमदा कुछ त्रुटी के कारण वापिस आ गया। जिससे दीनानाथ  बहुत दुखी हुए।  उन्होने निमदे के टुकड़े काट कर उसमें शनील का कपड़ा लगा कर नई किस्म की टोपियां बना डाली जिसे आज कुल्लवी टोपी के नाम से जाना जाता है।


उस वक़्त टोपियां 2.50 - 3.00 रूपये में बिकती थी। ये टोपियाँ लोगों ने बहुत पसंद की। यहीं से कुल्लवी टोपी अस्तित्व में आ गई। वक़्त के बदलाव के साथ टोपियों की बनावट में परिवर्तन आते रहे। कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमन्त्री ज्वाहर लाल नेहरू व इंदिरा गांधी कुल्लू से होते हुए मनाली को जा रहे थे, रास्ते में ढालपुर में लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। लोगों ने उन्हे हार पहनाए लेकिन भारद्वाज जी ने कुल्लवी टोपी पहनाकर सम्मानित किया था। इंदिरा गांधी को वह टोपी इतनी पसन्द आई कि मनाली से वापिस जाते हुए वह बहुत सी टोपियां अपने नाती पोतियों के लिए ले गई।

कुल्लू- मनाली में फिल्माई फिल्म 'बदनाम' में भी कुल्लवी टोपी को दिखाया गया है। दीनानाथ भारद्वाज का देहान्त 27 मार्च 2003 को हुआ। लेकिन उनके द्वारा शुरू की गई कुल्लवी टोपी की पहचान आज विश्व भर में अगल ही है। हालांकि किन्नौरी टोपी का इतिहास कुल्लवी टोपी से भी प्राचीन है। यही से दीनानाथ  भारद्वाज को कुल्लवी टोपी बनाने का विचार आया था। ऐतिहासिक रूप से हिमाचली टोपी, किन्नौर से लेकर पूर्व की रियासत बुशहर राज्य के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी।

कुल्लू टोपी सहित कुल्लू शाल व गर्म कपड़ों को उंचाईयों तक पहुंचाने वाले सत्या प्रकाश ठाकुर का कहना है की कुल्लवी टोपी को ईज़ाद करने का सारा श्रेय दीनानाथ भारद्वाज को ही जाता है। 

- PTC NEWS

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