यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बीजेपी को राहत, सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका खारिज

उत्तराखंड और गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए पैनल के खिलाफ एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों के पास ऐसा करने का अधिकारी है। कमेटी का गठन संविधान से राज्य सरकारों को मिली शक्ति के दायरे में आता है।

By  Vinod Kumar January 9th 2023 04:11 PM

 Supreme Court uniform civil code: समान नागरिक संहिता (uniform civil code) को लेकर देशभर में लंबे समय से बहस छिड़ी है। बीजेपी सिविल कोड के पक्ष में है, वहीं, विपक्ष लगातार इसका विरोध कर रहा है। बीजेपी शासित राज्यों में इसे लेकर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। उत्तराखंड और गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए पैनल के खिलाफ एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने पर सरकारों के पैनल के खिलाफ इस याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों के पास ऐसा करने का अधिकारी है। कमेटी का गठन संविधान से राज्य सरकारों को मिली शक्ति के दायरे में आता है। सिर्फ कमिटी के गठन को चुनौती नहीं दी जा सकती। उल्लेखनीय है कि यूनिफार्म सिविल कोड का मामला मूल कर्तव्यों में आता है। केंद्र या राज्य सरकारें यूनिफार्म सिविल कोड पर कानून बना सकती हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता अनूप बरनवाल ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड एक राष्ट्रीय मसला है। इस पर राज्यों की तरफ से अध्ययन करवाना जरूरी नहीं है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने याचिका को आधारहीन करार दिया। चीफ जस्टिस ने विवाह और गोद लेने जैसे मसलों से जुड़े कानूनों के संविधान की समवर्ती सूची में होने की बात की है।

सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने केबाद राज्य सरकार अब अपने प्लान के हिसाब से इस पर काम कर सकती है। मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने कहा कि ये किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं है। ऐसा करना राज्यों का अधिकार है। गुजरात और उत्तराखंड सरकार ने उन्हीं शक्तियों के तहत ये फैसला लिया है। 

यूनिफार्म सिविल कोड के जरिये सभी धर्मों के लिए उत्तराधिकार, विवाह, तलाक जैसे मामलों में एक जैसे कानून बनाए जाने की तैयारी है। कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम धर्मगुरु इसके विरोध में हैं। उनका कहना है कि यह इस्लामिक पर्सनल लॉ और शरीयत में हस्तक्षेप है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। 



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