नीरज चोपड़ा के इतिहास रचने के पीछे की कहानी
चंडीगढ़। नीरज चोपड़ा ने एथलेटिक्स में देश को गोल्ड मेडल दिलाकर इतिहास रच दिया है। नीरज की जीत के बाद देशभर के साथ-साथ उनके पैतृक गांव में भी जश्न का माहौल है। हरियाणा के पानीपत जिले में उनके पैतृक गांव खंडरा में इस तरह का जश्न शायद पहली बार है। नीरज की मां सरोज कहती हैं कि उन्होंने अपने जीवनकाल में अपने गांव में ऐसी धूमधाम कभी नहीं देखी। नीरज के गांव की आबादी 2,000 है, जिनमें ज्यादातर किसान हैं। नीरज भी किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता बताते हैं कि नीरज जब भी घर आते खेतों में जरूर काम करते।
नीरज चोपड़ा को उनके परिवार ने खेल के प्रति प्रोत्साहित किया। उनके सबसे छोटे अंकल उन्हें स्टेडियम में लेकर गए थे, वो चाहते थे कि नीरज एक खिलाड़ी बनें। नीरज का कहना है कि जब उन्होंने पहले दिन जैवलिन खेलना शुरू किया तो उन्हें जैवलिन से अजीब सा लगाव हो गया था, मैंने उसी दिन से जैवलिन को अपना प्रोफेशन चुन लिया था।
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2016 में, तेजतर्रार नीरज चोपड़ा ने 86.48 मीटर के थ्रो के साथ विश्व जूनियर रिकॉर्ड तोड़कर अपनी दावेदारी पेश कर दी थी। इसके बाद वह 2018 राष्ट्रमंडल खेलों और 2018 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के पहले भाला फेंकने वाले खिलाड़ी बने। नीरज यहीं नहीं रुके, उन्होंने जेवलिन लीजेंड उवे होन के मार्गदर्शन में अपने कौशल को और तेज किया।
टोक्यो ओलंपिक 2020 के रास्ते में, नीरज को एक बड़ी बाधा का सामना करना पड़ा, जब उनके हाथ में चोट लग गई, जिसे सर्जरी की आवश्यकता थी। लेकिन वह दृढ़ संकल्प के साथ ठीक हो गए क्योंकि उन्होंने राष्ट्र के लिए वह स्वर्णिम इतिहास लिखना सुनिश्चित किया था।