नीतिश दहिया का पैतृक गांव में अंतिम संस्कार, उत्तराखंड में हिमस्खलन की चपेट में आने से हुई थी मौत
सोनीपत/जयदीप राठी: उत्तराखंड में द्रौपदी डांडा-2 में ट्रैकिंग के दौरान बर्फीले तूफान की चपेट में आकर जान गंवाने वाले पर्वतारोही नीतीश के पार्थिव शरीर का गांव में अंतिम संस्कार किया गया। ग्रामीणों के साथ ही आसपास के गांवों व अन्य स्थानों से आए हजारों लोगों ने नम आंखों से नीतीश के अंतिम विदाई दी। ग्रामीणों ने नीतीश अमर रहे के नारे लगाए।
सोनीपत के मटिंडू गांव के नीतीश दहिया एडवांस कोर्स के लिए 23 सितंबर को द्रौपदी डांडा-2 में अपने सहयोगी पर्वतारोही प्रशिक्षुओं, प्रशिक्षकों व नर्सिंग स्टाफ के साथ गए ट्रैकिंग थे। इसी बीच 4 अक्तूबर को सुबह करीब आठ बजे इस दल के ज्यादातर सदस्य बर्फीले तूफान की चपेट में आ गए थे। हादसे के बाद शुरू किए गए बचाव अभियान में लगातार खराब मौसम बाधा बना हुआ था। दल के लापता सदस्यों को ढूंढ पाना मुश्किल हो रहा था। इसी बीच जब मटिंडू निवासी पर्वतारोही नीतीश दहिया के परिजनों को नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की तरफ से नीतीश के बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया तो परिवार के कई सदस्य उत्तराखंड के लिए 5 अक्तूबर को ही रवाना हो गए थे।
7 अक्तूबर को कई पर्वतारोहियों के शवों को बरामद किया गया, जिसके बाद सात शवों को द्रौपदी का डांडा बेस कैंप से हेलिकाप्टर के जरिए मातली हैलिपैड़ पहुंचाया गया था। जहां से इन शवों की शिनाख्त व पोस्टमार्टम के लिए उत्तरकाशी सरकारी अस्पताल में भेजा गया था। यहीं पर एक शव की पहचान परिजनों ने नीतीश के रूप में की थी। रविवार सुबह नीतीश का शव गांव में लाया गया। उनके अंतिम दर्शन को लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। हर आंख नम थी।
ग्रामीणों ने कहा कि नीतीश ने छोटी सी उम्र में देश व प्रदेश का नाम रोशन कर दिया है। ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें सरकार की तरफ से शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए। आपको बता दे कि नीतीश अपने परिवार के इकलौते बेटे थे, नीतीश के पिता राजवीर ने बताया कि उसके बेटे ने छोटी सी उम्र में वह मुकाम हासिल कर लिया जो कि बड़े-बड़े नहीं कर पाए, उसने गांव के लिए सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर भाग लिया।
वहीं, दहिया खाप के प्रधान सुरेंद दहिया ने कहा कि नीतीश ने इस छोटी सी उम्र में राष्ट्रीय चेतना के लिए बड़ा काम किया है। गांव में चाहे पर्यावरण को बचाने के लिए काम हो या फिर युवाओं को नशे से बचाने के लिए वह हार सामाजिक कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था। हमें आज गर्व है कि वो तिरंगे में लिपटकर गांव पहुंचा है और उसने छोटी सी उम्र में बड़ी बड़ी चोटियों को फतेह किया।