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'शर्मिला को कभी ट्रैक्टर ड्राइवरी सीखते समय सुनने पड़े थे ताने, अब दिल्ली में चला रही हैं डीटीसी बस

Written by  Vinod Kumar -- September 23rd 2022 01:05 PM -- Updated: September 23rd 2022 01:07 PM
'शर्मिला को कभी ट्रैक्टर ड्राइवरी सीखते समय सुनने पड़े थे ताने, अब दिल्ली में चला रही हैं डीटीसी बस

'शर्मिला को कभी ट्रैक्टर ड्राइवरी सीखते समय सुनने पड़े थे ताने, अब दिल्ली में चला रही हैं डीटीसी बस

चरखी दादरी/प्रदीप साहू: ड्राइवरी एक ऐसा पेशा है जिसे समाज पुरुषों से ही जोड़कर देखता है, लेकिन चरखी दादरी जिले के अखत्यारपुरा गांव की निवासी शर्मिला ने हैवी व्हीकल ड्राइवर बनकर समाज के सामने नई मिसाल पेश की है। शर्मिला को कभी ट्रैक्टर पर ड्राइविंग सीखते समय ताने पड़ते थे। तानों को दरकिनार करते हुए शर्मिला ने अपनी रास्ता नहीं छोड़ा और उनका संघर्ष रंग लाया और अब उनकी ज्वाइनिंग डीटीसी में बतौर चालक हुई है। अब वह राजधानी की सड़को पर डीटीसी बस दौड़ा रही हैं। हैवी व्हीकल ड्राइवर बनीं महेंद्रगढ़ निवासी शर्मिला की आठवीं पास करते ही चरखी दादरी के गांव अखत्यापुरा में शादी हो गई थी। शादी के बाद दो बच्चे हुए और पति की मजदूरी से काम नहीं चला तो शर्मिला ने सरकारी स्कूल में कुक का काम किया। साथ ही सास के साथ मिलकर भैंस पालकर परिवार का पालन-पोषण किया। परिवार की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने ड्राइवरी सीखने का फैसला लिया था। शर्मिला ने बताया कि बेटे ने उसको साइकिल चलानी सिखाई थी। एक बार बेटा बीमार हो गया और उसके पति को बाइक चलानी नहीं आती थी। बेटे को लगातार अस्पताल ले जाना पड़ता था और एक-दो दिन साथ जाने के बाद परिचितों ने भी मना कर दिया। इसके बाद उसने बाइक सीखी और बाद में हैवी लाइसेंस का प्रशिक्षण लिया। शुरुआत में जब उन्होंने बाइक या ट्रैक्टर चलाना सीखा तो लोगों के ताने सुनने को मिले। लोगों ने उनके मुंह पर बोला कि यह काम पुरुषों का है, न कि महिलाओं का। इन तानों को अनसुना कर उन्होंने अपना प्रशिक्षण जारी रखा और उनका संघर्ष रंग लाया है। शर्मिला का कहना है कि उन्हें ताने देने वाले ही जब ड्राइवरी की तारीफ करते हैं तो उन्हें खुशी होती है। शर्मिला की चाची सास कमला देवी ने बताया कि शर्मिला ने संघर्ष कर ड्राइवरी सीखी है। उनकी बहू दिल्ली में डीटीसी की बसें चलाती है, ऐसे में उनको शर्मिला पर गर्व है। घर के काम तो सास व पति करते हैं, समय मिलने पर शर्मिला भी घर का काम करती है। वहीं, ग्रामीण पवन कुमार ने कहा कि शर्मिला ने संघर्ष करते हुए डीटीसी में नौकरी पाई है। पहले लोग ताने मारते थे, अब गांव की बहू पर उन्हें नाज है कि वह दिल्ली में डीटीसी बस चला रही हैं।


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