रामपुर उपचुनाव में दांव पर लगा आज़म का राजनीतिक करियर!

By  Mohd. Zuber Khan November 26th 2022 02:36 PM -- Updated: November 26th 2022 02:44 PM

लखनऊ: मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा के साथ-साथ रामपुर सदर में भी उपचुनाव है। हॉट सीट रामपुर में भी 5 दिसंबर को मतदान होना है, जिसके लिए ख़ासतौर से मोहम्मद आज़म ख़ान हर मुमकिन जद्दोजहद कर रहे हैं। हालांकि रामपुर के दिग्गज नेता आज़म ख़ान की ये मशक्कत कितनी कारगर साबित होती है, इसके लिए हम सबको 8 दिसंबर को आने वाले नतीजों तक इंतज़ार करना पड़ेगा। 

वैसे भले ही रामपुर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आसिम रज़ा हों, लेकिन अगर कुछ भी अनहोनी होती है, तो जवाबदेही के लिए आज़म ख़ान को ही कटघरे में खड़ा किया जाएगा, क्योंकि इस चुनाव की पूरी कमान  पूरी ज़िम्मेदारी के साथ आज़म ख़ान के पास ही है।

1977 के बाद से ये पहली बार है जबकि आज़म ख़ान परिवार का कोई भी सदस्य सीधे तौर पर रामपुर से चुनाव नहीं लड़ रहा है। वजह साफ़ 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण देने के मामले में आज़म ख़ान को दोषी क़रार दिया गया है, नतीजतन उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है। 10 बार विधायक रहे आज़म ख़ान पर कोर्ट ने 6 साल तक चुनाव ना लड़ने की पाबंदी लगा दी है। अगर ये पाबंदी नहीं हटती है तो 2031 तक आज़म ख़ान को सीधे तौर पर एक उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ने के लिए इंतज़ार करना पड़ सकता है।

ये महज़ इत्तेफाक़ तो नहीं होगा कि जिस शख़्स ने आज़म ख़ान के पॉलिटिकल करियर को तहस-नहस कर दिया है, आज वही शख़्स उन्हें एक बार फिर से चुनौती देने के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। जी, बिल्कुल आकाश सक्सेना... दरअसल आकाश सक्सेना भी सपा उम्मीदवार आसिम रज़ा की तरह रामपुर के नामचीन रईस हैं। आकाश सक्सेना पिछले लोकसभा चुनाव में आज़म ख़ान से हारकर दूसरे नंबर पर रहे थे। आज़म ख़ान, बेटे अब्दुल्लाह आज़म और पत्नी ताज़ीन फातिमा को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने में आकाश सक्सेना की बड़ी भूमिका रही है। आज़म ख़ान क़रीब 87 क़ानूनी मामलों में फंसे हुए हैं, जिनमें से 41 मामलों में आकाश सक्सेना खुद वादी हैं।

रामपुर विधानसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में क़रीब चार लाख मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इसके लिए रामपुर में 166 मतदान केंद्र और 454 बूथ बनाए गए हैं। यहां पर 55 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, शायद यही वजह रही है कि रामपुर से हमेशा मुस्लिम चेहरा चुनकर ही लखनऊ पहुंचता रहा है। हालांकि इस बार बयार बदली-बदली से नज़र आ रही है। समाजवादी पार्टी ने तीनों उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी, लेकिन रामपुर में अभी तक इन स्टार प्रचारकों की मौजूदगी दर्ज नहीं की जा सकी है। 

यही नहीं, कांग्रेसी नेता और पूर्व मंत्री नवाब काज़िम अली ख़ान ने भी खुले तौर पर आज़म ख़ान की बग़ावत का ऐलान कर दिया है। ये अदावत दशकों पुरानी है। असल में नवाबों के इस शहर पर 1952 से 1977 तक नवाबी ख़ानदान का ही परचम लहरता रहा है। 1977 में आज़म ख़ान की दस्तक के बाद नवाबी परिवार के हाथों से सत्ता दरक गई। 1980 में पहली बार आज़म ख़ान चुनाव जीते। 1996 के चुनाव को अगर छोड़ दिया जाए तो आज़म परिवार का ही रामपुर की सियासत में दबदबा क़ायम है। ऐसे में नवाब काज़िम अली ख़ान ने आसिम रज़ा का साथ नहीं देने की घोषणा कर दी है।

इसके अलावा गन्ना विकास परिषद के पूर्व अध्यक्ष बाबर अली ख़ान ने भी बीजेपी उम्मीदवार का साथ देने की बात कह दी है। आज़म ख़़ान के क़रीबी माने जाने वाले फसाहत अली शानू, आसिम रज़ा को उम्मीदवार बनाए जाने से इतने नाराज़ हैं कि उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया है। साथ ही राष्ट्रीय लोकदल के ज़िलाध्यक्ष के भी आसिम रज़ा से मतभेद जगज़ाहिर हैं।

कुल-मिलाकर इस बार आकाश सक्सेना और आसिम रज़ा में मुक़ाबला बेहद दिलचस्प माना जा रहा है। वैसे इस राजनीतिक टक्कर में बाज़ी किसके हाथ लगेगी, इस बाबत फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी, हां मगर, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह चुनाव आज़म ख़ान के राजनीतिक करियर की दशा-दिशा तय करने के लिए मील का पत्थर साबित ज़रूर होगा।

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