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देशभर में पीएफआई के ठिकानों पर छापेमारी के दो-दो राउंड के बाद आखिरकार भारत सरकार ने वो कड़ा फैसला ले ही लिया जिसके कयास पहले ही लगाए जा रहे थे और जिसकी मांग देश के कई राज्यों की सरकारें लंबे वक्त से करती आ रही थी। पीएफआई यानि पॉपुलर फ्रंड ऑफ इंडिया को आखिरकार प्रतिबंधित कर दिया गया है और इसे लेकर हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने भी भारत सरकार की तारीफ की है. विज ने कहा कि देश के बाहर वाले दुश्मनों से ज्यादा देश को देश के अंदर पनप रहे दुश्मनों से खतरा है।
क्या है पीएफआई ?
पीएफआई यानि पॉपुलर फ्रंड ऑफ इंडिया एक ऐसा संगठन है जो खुद को खास तौर से मुसलमानों, पिछड़ों और दलित वर्ग के उत्थान के लिए काम करने वाला समाजसेवी संगठन बताता है लेकिन इसके गठन के बाद से ही इस पर समाज विरोधी गतिविधियों और देशविरोधी कामों के आरोप लगते रहे हैं। 17 फरवरी साल 2007 में पीएफआई का गठन हुआ था कर्नाटक औऱ केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में इसकी अच्छी पकड़ है लेकिन साथ ही पीएफआई का दावा है कि देश के 23 राज्यों में इसके कार्यकर्ता सक्रिय है. जांच एजेंसियों के मुताबिक। दिल्ली में सीएए प्रदर्शन को लेकर साल 2020 में हुए दंगों में भी पीएफआई की सक्रिय भूमिका थी।
पीएफआई पर ये हैं बड़े आरोप:
देशविरोधी ताकतों का साथ देने, आतंकी गतिविधियों में शामिल होने और देश का आपसी सौहार्द बिगाड़ने की साजिश रचने के पीएफआई पर आरोप लगते रहे हैं। इसके साथ ही देश की अखंडता को प्रभावित करने के आरोप में भी पीएफआई पर ये बड़ी कार्रवाई की गई है। इस बीच पीएफआई के करीब 100 से ज्यादा बड़े नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया है.
पीएफआई पर एक कट्टरपंथी संगठन होने का आऱोप लगता रहा है। साल 2017 में ही एनआईए ने भी पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की भारत सरकार से मांग की थी। एनआईए की जांच में इस संगठन की भूमिका हिंसक प्रदर्शनों और आतंकी गतिविधियों में सक्रिय पाई गई थी। पिछले एक हफ्ते के दौरान पीएफआई पर हुई छापेमारी पर ईडी ने ये भी दावा किया है कि इस साल जुलाई में बिहार की राजधानी पटना में प्रधानमंत्री मोदी पर हमले तक की योजना के दस्तावेज इस छापेमारी में मिले हैं।
भारत सरकार ने अब पीएफआई पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया है। इसके साथ ही पीएफआई जैसे और इसके समर्थक कई अन्य संगठन भी बैन किए गए हैं जिसे पीएफआई के खिलाफ भारत सरकार की एक बड़ी कार्रवाई के तौर पर माना जा रहा है।