क्यों फट रही जोशीमठ की जमीन! 47 पहले दी गई चेतावनी को किया नजरअंदाज...विकास के नाम पहाड़ों का हो रहा 'चीरहरण'

जोशीमठ हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत उत्तराखंड के 'गढ़वाल हिमालय' में 1890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जोशीमठ की जनसंख्या 20,000 से ज्यादा है। खूबसूरत शहर जोशीमठ इंसानी लालच के साथ साथ अनियोजित और अंधाधुंध विकास परियोजनाओं के चलते खतरे में पड़ गया है।

By  Vinod Kumar January 7th 2023 01:28 PM

प्रकृति से छेड़छाड़ हमेशा महंगी पड़ती है। प्रकृति जब मानवीय छेड़छाड़ से तंग आकर अपना रौद्र रूप दिखाती है तो इंसानों की आंखें खुलती हैं। उत्तराखंड का जोशीमठ भी ऐसी स्थिति से गुजर रहा है। जोशीमठ में पिछले कई दिनों से जमीन में बड़ी-बड़ी दरारें नजर आ रही हैं। आलम ये है कि घरों पर छत्त से लेकर जमीन तक दरारें आ गई हैं। धरती फट रही है और अब इन घरों में रह रहे लोग डर के साए में जीवन जी रहे हैं। 

जोशीमठ हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत उत्तराखंड के 'गढ़वाल हिमालय' में 1890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जोशीमठ की जनसंख्या 20,000 से ज्यादा है। खूबसूरत शहर जोशीमठ इंसानी लालच के साथ साथ अनियोजित और अंधाधुंध विकास परियोजनाओं के चलते खतरे में पड़ गया है। जोशीमठ में जमीन का धंसना कुछ महीने या साल पहले शुरू नहीं हुआ है। यहां जमीन धंसने का खतरा सालों से बना हुआ है। भू गर्भ विशेषज्ञों ने इसे लेकर चेतावनी भी जारी की थी, लेकिन तमाम बातों को दरकिनार कर विकास के नाम पर जोशीमठ का चीरहरण जारी था। अब प्रकृति अपना साथ हुई छेड़छाड़ का बदला लेने पर उतारी हो गई है।

इलाके के 500 से ज्यादा घरों में दरारें आ गई हैं, जमीन फटने लगी है और सड़कें धंस रही हैं। हालांकि सजा यहां के बेकसूर आम शहरियों को मिल रही है। इन्हें अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जबकि जोशीमठ का विकास के नाम पर दोहन करने वाले धन्नासेठ आज भी अपनी हवेलियां में ठाठ से बैठे हैं। जोशीमठ की जनता ने पहाड़ों हो रही ब्लास्टिंग, टनल निर्माण, ड्रिलिंग का हमेशा विरोध किया सैकड़ों प्रदर्शन किए, लेकिन इनकी एक ना सुनी गई और नतीजा इन्हें आज भुगतना पड़ रहा है। 

जोशीमठ में एक तरफ NTPC की 520 मेगावॉट की परियोजना पर काम चल रहा है तो वहीं हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण भी शुरू हो गया है। इन परियोजनाओं को रोकने के लिए लोगों ने कई आंदोलन भी किए गए, लेकिन ना सरकार और ना प्रशासन ने इन बातों को गौर से सुना।  

जोशीमठ में 70 के दशक में चमोली में आई सबसे भीषण तबाही बेलाकुचि बाढ़ के बाद से लगातार भू-धंसाव की घटनाएं होती रही हैं। जमीन धंसने की घटनाओं के बाद यूपी सरकार ने 1975 में मिश्रा आयोग का गठन किया। इस आयोग में भू-वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रसाशन के कई अधिकारियों को शामिल किया गया। एक साल के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। 

रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ एक रेतीली चट्टान पर बना है। जोशीमठ की तलहटी में कोई भी ड्रिलिंग, ब्लास्ट और खनन और बड़े प्रोजेक्ट शुरू ना करने की बात कही गई थी, लेकिन इन सब बातों को दरकिनार किया गया। सरकार ने कई बिजली परियोजनाओं को यहां मंजूरी दी। परियोजनाओं के निर्माण कार्य के दौरान ड्रिलिंग, ब्लास्टिंग जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया गया। जोशीमठ के स्थानीय लोगों का मानना है कि एनटीपीसी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से ही यह मुसीबत पैदा हुई है। 


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