गरीबों का मसीहा था दुल्ला भट्टी 'डाकू', आज भी लोहड़ी पर इसलिए सुनाई जाती है उनकी कहानी

By  Vinod Kumar January 9th 2022 06:31 PM

लोहड़ी (Lohri) का पर्व सिख और हिंदू समाज द्वारा मनाया जाता है। मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के एक दिन पहले लोहड़ी सेलिब्रेट की जाती है। लोहड़ी का त्यौहार खुशियों और उल्लास का त्यौहार है। इस दिन लोग आग के सामने जमकर भांगड़ा और गिद्दा करते हैं।

लोहड़ी के दिन छोटे छोटे बच्चे घर घर जाकर लोहड़ी गीत गाकर लोहड़ी मांगते हैं। इसके बदले में बच्चों को पैसे, अनाज, गुड़, मुंगफली, गच्चक, रेवडड़ियां बांटी जाती हैं। लोहड़ी के दौरान बच्चे दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हैं। बच्चों द्वारा सुनाई जाने वाली ये कहानी सच्ची घटना पर आधारित है।

पंजाब में दुल्ला भट्टी से जुड़ी एक काफी प्रचलित लोककथा है। बताया जाता है कि बादशाह अकबर के समय पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक युवक जो डाकू था। दुल्ला भट्टी अमीरों से धन लूटकर गरीबों में बांट देता था। दुल्ला भट्टी को गरीब अपना मसीहा मानते थे। दुल्ला भट्टी अंदर से एक नेक इंसान था। एक बार दुल्ला भट्टी ने देखा की कुछ अमीर व्यापारी सामान के बदले में इलाके की लड़कियों का सौदा कर रहे थे।

 

ये देखने के बाद दुल्ला भट्टी ने बहां पहुंचकर उन व्यापारियों को खदेड़ दिया और बाद में मुक्त कराई गईं सभी लड़कियों की उन्होंने शादी भी करवाई थी। इस घटना के बाद से दुल्ला भट्टी पूरे इलाके में फेमस हो गया। दुल्ला भट्टी की याद में लोहड़ी के दिन बच्चे गाने के रूप में इस कहानी को आज भी सालों से सुनाते और सुनते आ रहे हैं।

 

दुल्ला भट्टी की लोहड़ी का लोकगीत

सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो,

दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले दी धी व्याही हो,

सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,

कुड़ी दा लाल पटाका हो, कुड़ी दा सालू पाटा हो,

सालू कौन समेटे हो, चाचे चूरी कुट्टी हो,

जमीदारां लुट्टी हो, जमीदारां सदाए हो,

गिन-गिन पोले लाए हो, इक पोला घट गया,

जमींदार वोहटी ले के नस गया, इक पोला होर आया,

ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया,

सिपाही फेर के लै गया, सिपाही नूं मारी इट्ट, भावें रो ते भावें पिट्ट,

साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी

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