इस अमरूद की कीमत 100 रुपये, बिक रहा हाथों-हाथ

By  Arvind Kumar December 3rd 2019 02:06 PM -- Updated: December 3rd 2019 04:29 PM

जींद। (अमरजीत खटकड़) कंडेला गांव के किसान सुनील के बाग से हाथों-हाथ अमरूद बिक रहे हैं। भाव प्रति किलो नहीं, बल्कि प्रति अमरूद मिल रहे हैं। एक अमरूद की कीमत 100 रुपये है। ये सुनने में अजीब लगता है कि एक अमरूद के इतने रुपये कैसे। इतनी महंगी तो सेब भी नहीं है। लेकिन बता दें कि ये कोई बाजार में मिलने वाले सामान्य अमरूद नहीं हैं। थाइलैंड किस्म के अमरूद हैं। एक अमरूद का वजन 800 ग्राम से एक किलो तक है।

farmer 11 इस अमरूद की कीमत 100 रुपये, बिक रहा हाथों-हाथ

सुनील कंडेला ने अपने खेत में दो साल पहले तीन एकड़ में अमरूद का बाग लगाया था। जिसमें से एक एकड़ में थाईलैंड की किस्म के अमरूद लगाए हैं। इस साल बड़ी मात्रा में अमरूद का उत्पादन हुआ। ना तो उसे मार्केटिंग करनी पड़ी और ना ही बेचने के लिए मंडी जाना पड़ा। खेत से ही अमरूद खरीद कर ले जाने वालों की होड़ लग गई। आसपास के गांवों के अलावा दूसरे जिलों व राज्यों से भी लोग आ रहे हैं।

Guava 3 इस अमरूद की कीमत 100 रुपये, बिक रहा हाथों-हाथ

हिमाचल से सुबह चौपाल ऑर्गेनिक कल्याण मंच के संस्थापक विनोद मेहता के नेतृत्व में चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल सुनील के खेत में पहुंचा। जिसमें विनोद शर्मा, राजेंद्र सिंह व नरवीर चौहान शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने ऑर्गेनिक तरीके से तैयार किए अमरूद के फलों की प्रक्रिया समझी। वे अपने साथ 800-800 ग्राम के 10 किलो अमरूद लेकर गए। ताकि वहां लोगों को इस अमरूद के आकार व स्वाद के बारे में अवगत करा सकें।

ऐसे तैयार किया 800 ग्राम का अमरूद

सुनील ने बताया कि उसने पौधे पर लगे फलों को ट्रिपल प्रोटेक्शन फॉम से कवर किया। जिससे फल पर गर्मी, सर्दी, धूल व बीमारियों का सीधा असर ना हो। इससे अमरूद का साइज भी काफी बढ़ गया और अमरूद पूरी तरह से फ्रेश भी है। इसमें ना तो किसी तरह के स्प्रे का प्रयोग किया गया है और ना ही रासायनिक खाद का। खेत में खास-फूस व पौधों के पत्तों को गला कर तैयार की गई खाद का प्रयोग करते हैं।

Guava 3 इस अमरूद की कीमत 100 रुपये, बिक रहा हाथों-हाथ

डालते हैं गाय का गोबर

सुनील ने अपने खेत में तीन गायें भी रखी हुई हैं। इन गायों का दूध पीने के साथ-साथ उसके गोबर व मूत्र को खाद के रूप में प्रयोग करता है। खाद व मूत्र में डी-कंपोजर डाल कर जैविक खाद बनाते हैं। सुनील बताते हैं कि इससे लागत भी काफी आती है और फसल में किसी तरह के कीटनाशकों का प्रयोग भी नहीं करना पड़ता।

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