Fri, Apr 26, 2024
Whatsapp

आज शहीद हुए थे 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा, दुश्मनों पर काल बनकर टूटा था देश का परमबीर सपूत

Written by  Vinod Kumar -- July 07th 2022 11:35 AM
आज शहीद हुए थे 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा, दुश्मनों पर काल बनकर टूटा था देश का परमबीर सपूत

आज शहीद हुए थे 'शेरशाह' कैप्टन विक्रम बत्रा, दुश्मनों पर काल बनकर टूटा था देश का परमबीर सपूत

जब-जब कारगिल युद्ध का जिक्र किया जाएगा कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम हमेशा लिया जाएगा। भारतीय सेना के इस जांबाज ने मक्कार पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर अपनी बहादुरी से पानी फेर दिया था। विक्रम बत्रा को शेरशाह के नाम से जाना जाता है। परमवीर विक्रम बत्रा की आज 23वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा करगिल की ऊंची चोटी पर शहादत पाने के साथ दुश्मनों को भारत की जमीन के खदेड़ गिया था। विक्रम बत्रा ने करगिल में ऐसा शौर्य दिखाया कि दुश्मन उनके नाम से थर थर कांपने लगे थे।   विक्रमबत्रा का जन्म 14 सितंबर 1974 को कांगड़ा जिले में स्थित पालमपुर के घुग्गर गांव में हुआ था। जन्में शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को उनकी सैन्य टुकड़ी शेरशाह के नाम से जानती थी। उनके अदम्य साहस और नेतृत्व प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। कारगिल युद्ध के 23 बाद भी कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानानियां भारतीयों की रगों में जोश भर देती हैं। करगिल युद्ध में विक्रम बत्रा को जो भी मिशन सौंपा गया उन्होंने उसे पूरा करके ही दम लिया। करगिल की जंग में विक्रम बत्रा का कोड नेम शेरशाह था और इसी कोडनेम की बदौलत पाकिस्तानी उन्हें शेरशाह कहकर बुलाते थे। 6 दिसम्बर 1997 को 13 जैक राइफल्स में विक्रम बत्रा बतौर लेफ्टिनेंट सेना कमीशन हुए। 1 जून 1999 को उनकी पलटन को करगिल युद्ध के लिए भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों पर फतह हासिल करने के बाद उन्हें रणभूमि में ही लेफ्टिनेंट से कैप्टन बना दिया गया। विक्रम बत्रा से प्रभाविति होकर श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण पीक 5140 दुश्मनों के कब्जे में थी। दुश्मन यहां से लगातार बमबारी कर रहा था। इस चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को सौंपा गया। दुर्गम और कठिन चढ़ाई वाला इलाका होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। जीत के बाद वायरलेस पर विक्रम बत्रा की आवाज गूंजी 'ये दिल मांगे मोर'। 5140 की चोटी फतह करने के बाद भारतीय फौज के हौसले बुलंद हो गए। 5140 पर तिरंगा लहराने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने खुद उन्हें फोन पर बधाई दी। अगला मिशन पीक 4875 को हासिल करना था। पीक 5140 का मिशन पूरा कर कैप्टन विक्रम बत्रा भी लौटे ही थे। शरीर पर कुछ चोटों के निशान भी थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने सीनियर्स से इस मिशन पर जाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें यहां जाने से मनाही की गई। कैप्टन विक्रम बत्रा के बार बार कहने पर उन्हें इजाजत दे दी गई। इस मिशन पर अपनी जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर के साथ कैप्टन बत्रा ने 8 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया। मिशन लगभग पूरा होने ही वाला था। तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक ब्लास्ट हुआ, नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए। वो दर्द कराह रहे थे। विक्रम बत्रा से उनकी हालत देखी नहीं गई। दुश्मन की गोलीबारी के बीच कैप्टन बत्रा नवीन के पास जा पहुंचे। नवीन को बचाने के लिए वो उन्हें पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ये शेर शहीद हो गया। विक्रम बत्रा को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


Top News view more...

Latest News view more...