आखिर किसानों को किस बात का है डर?
चंडीगढ़। (संजय मल्होत्रा) कृषि क्षेत्र से जुड़े विधेयकों को लोकसभा में पारित कर दिया गया है। सरकार का दावा है कि कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए और विशेषकर किसानों की आय को साल 2022 तक दोगुना करने के लिए ये कानून लाना जरूरी था। लेकिन यह साफ है कि ना तो किसान संगठन और ना ही विपक्षी दल सरकार से सहमत हैं। तीनों अध्यादेशों का विरोध निरंतर बढ़ता जा रहा है। कल यानी 20 सितंबर को हरियाणा के किसान इन अध्यादेशों के विरोध में प्रमुख सड़क मार्गों को जाम करने वाले हैं। यह भी पढ़ें: कृषि मंत्री जेपी दलाल बोले- अध्यादेशों पर विपक्षी दल बेवजह कर रहे राजनीति यह भी पढ़ें: हरसिमरत के इस्तीफे के बाद दुष्यंत पर भी बढ़ा दबाव आने वाली 25 तारीख को भारत बंद की कॉल की गई है। इससे पहले भी किसानों और सरकार के बीच टकराव हो चुका है। ऐसे में क्यों न एक नजर दौड़ा ली जाए इन विधेयकों के उन प्रावधानों पर जिनकी वजह से पूरा विवाद बना हुआ है। किसानों को सबसे ज्यादा आपत्ति कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य विधेयक को लेकर है। इसे आम भाषा में एपीएमसी एक्ट के तौर पर जाना जाता है। इस कानून के बन जाने के बाद किसान अब अपना उत्पाद सरकारी मंडियों से बाहर भी सीधे किसी भी व्यापारी, निर्यातक या कंपनी को बेच सकेंगे। किसान संगठनों की यूं तो कई आपत्तियां हैं लेकिन सबसे बड़ा एतराज है कि इस प्रावधान की आड़ में सरकार न्यूनतन समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था को समाप्त करने की योजना बना रही है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल तक यह स्पष्ट कर चुके हैं कि एमएसपी की व्यवस्था को खत्म करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। विशेषज्ञों की राय है कि एपीएमसी एक्ट में इस संशोधन के बाद सरकारी मंडियों का खरीद करने का एकाधिकार समाप्त होगा और किसान को अपने उत्पाद का बेहतरीन मूल्य प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। इसके साथ-साथ आवश्यक वस्तु कानून में भी संशोधन किया गया है। कानून के तहत ज्यादातर कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु माना गया था और इनके भंडारण पर रोक लगाए जाने का प्रावधान था। इस संशोधन के बाद अब अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज और आलू आदी को आवश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया गया है। अब कुछ अपवादों को छोड़ इन वस्तुओं की भंडारण की सीमा तय नहीं की जाएगी। किसान संगठनों का कहना है कि इस संशोधन के बाद जमाखोरी की समस्या बढ़ेगी और इसका नुकसान किसान और उपभोक्ता दोनों को होगा। वहीं सरकार का कहना है कि देशभर में कोल्ड चेन व्यवस्था को मजबूत बनाने और कृषि उत्पादों के दामों में होने वाले उतार चढ़ाव को रोकने के लिए यह संशोधन किया जाना जरूरी था। इस संशोधन के बाद कोल्ड स्टोरेज और अन्य भंडारण सुविधाओं के क्षेत्र में निवेश होगा और इसका सीधा लाभ देश के करोड़ों किसानों को मिलेगा। तीसरा विधेयक कांट्रेक्ट फार्मिंग से जुड़ा हुआ है। इसे मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक कहा गया है। इस विधेयक का उद्देश्य किसानों को कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयां, थोक विक्रेताओं और निर्यातकों आदी से सीधे जोड़ना है। ताकि वो अपनी फसल को लेकर इनके साथ सीधे अनुबंध कर सके। यहां पर किसान संगठनों का एतराज यह है कि बड़ी कंपनियों किसानों के साथ ऐसा अनुबंध कर लेंगी जो एकतरफा होंगे और किसानों के लिए घाटे का सौदा होंगे। कुल मिलाकर किसान तीनों कानूनों से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में यह विरोध काफी ज्यादा है। वहीं कई अन्य राज्यों के किसानों ने इन बदलावों का स्वागत भी किया है। ---PTC NEWS---