vijay diwas 2021: भारत के वीर सैनिकों ने बदल दिया था एशिया का भूगोल, पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने टेके थे घुटने
नई दिल्ली: साल 1971 में आज ही के दिन भारत ने पाकिस्तान (Indo Pak war 1971) को युद्ध के मैदान में धूल चटाई थी। युद्ध के मैदान में पाकिस्तान के खिलाफ मिली जीत को ही भारत आज के दिन विजय दिवस (vijay diwas ) मनाता है। इस बार भारत 50वां विजय दिवस मना रहा है। पीएम मोदी ने नेशनल वॉर मेमोरियल पर जाकर 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्वर्णिम विजय दिवस पर बहादुर सैनिकों के शौर्य को याद किया और 1971 युद्ध को भारतीय सेना के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय बताया। राजनाथ सिंह ने एक ट्विट में कहा, 'स्वर्णिम विजय दिवस के अवसर पर हम 1971 के युद्ध के दौरान अपने सशस्त्र बलों के साहस और बलिदान को याद करते हैं। 1971 का युद्ध भारत के सैन्य इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। हमें अपने सशस्त्र बलों और उनकी उपलब्धियों पर गर्व है।'
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि, '1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में विजय दिवस की 50वीं वर्षगांठ पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई। भारतीय सेना के अद्वितीय पराक्रम व साहस को नमन कर, उन वीर सपूतों को स्मरण करता हूं जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण कर देश का गौरव बढ़ाया।'Sharing more pictures from the historic 1971 war. #SwarnimVijayVarsh pic.twitter.com/7Lwa6Z0t1t — Rajnath Singh (@rajnathsingh) December 16, 2021
विजय दिवस क्यों मनाया जाता है? भारत ने हर बार पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में धूल चटाई है, लेकिन 1971 में मिली जीत कुछ खास है। इस जीत ने एशिया का भूगोल बदल दिया था। पाकिस्तान की हार के साथ ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था। बांग्लादेश पहले पाकिस्तान का हिस्सा था। विजय दिवस 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है। इस युद्ध के अंत के बाद 93 हजार पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था। 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र हो गया, जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी सेना ने भी हथियारों के साथ युद्ध में हिस्सा लिया था। [caption id="attachment_558736" align="alignnone" width="300"]
युद्ध के बाद जश्न मनाती बांग्लेदेश मुक्ति वाहिनी सेना[/caption]
पूर्वी पाकिस्तान (आज बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। 16 दिसंबर की शाम जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर किए। भारत युद्ध जीता। हर साल इस दिन को हम विजय दिवस के रूप में मनाते हैं।
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तत्कालीन सेनाध्यक्ष सैम मॉनेकशा युद्ध की रणनीति पर विचार विमर्श करते[/caption]
जनरल जैकब पहुंचे थे ढाका
जनरल जैकब को मानेकशॉ का मैसेज मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें। उस समय जैकब की हालत बिगड़ रही थी। भारत के पास केवल तीन हजार सैनिक और वे भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर। वहीं, दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी के पास ढाका में 26 हजार 400 सैनिक थे।
भारतीय सेना ने युद्ध पर पूरी तरह से अपनी पकड़ बना ली। भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर जगजीत अरोड़ा अपने दलबल समेत एक दो घंटे में ढाका लैंड करने वाले थे और युद्ध विराम भी जल्द समाप्त होने वाला था। जैकब के हाथ में कुछ भी नहीं था। जैकब जब नियाजी के कमरे में घुसे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था। आत्मसमर्पण का दस्तावेज टेबल पर रखा हुआ था। [caption id="attachment_558740" align="alignnone" width="300"]
सरेंडर करता लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी[/caption]
नियाजी की आंखों में आंसू
शाम के साढ़े चार बजे लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर लैंड किए। अरोड़ा और नियाजी एक टेबल के सामने बैठे और दोनों ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर दस्तखत किए। नियाजी ने अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया। नियाजी की आंखों में आंसू आ गए। स्थानीय लोग नियाजी की हत्या पर उतारू नजर आ रहे थे, लेकिन भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने नियाजी को सुरक्षित बाहर निकाला।
संसद में इंदिरा गांधी की घोषणा उधर, इंदिरा गांधी संसद भवन के अपने दफ्तर में एक टीवी इंटरव्यू दे रही थीं। तभी जनरल मानेक शॉ ने उन्हें बांग्लादेश में मिली शानदार जीत की खबर दी। इंदिरा गांधी ने लोकसभा में शोर-शराबे के बीच घोषणा की कि युद्ध में भारत को जीत मिली है। इंदिरा गांधी के बयान के बाद पूरा सदन जश्न में डूब गया।