सिख नरसंहार की कहानी सुनकर कांप उठेगी आपकी रूह...
रेवाड़ी। (मोहिंदर भारती) रेवाड़ी जिले के छोटे से गांव होंद चिल्लर में 84 के दंगों में सिख परिवार के 32 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में देश के इस गांव में कुछ ऐसा हुआ जिसको सुनकर आपकी रूह कांप उठेगी। 31 अक्टूबर 1984 को देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 2 नवंबर को सिख विरोधी दंगों में दंगाइयों ने सिखों के इस गांव में कत्लेआम मचा दिया था। सिख समाज की कुछ महिलाएं अपने छोटे बच्चों को लेकर हवेली की पहली मंजिल पर दंगाइयों से बचने के लिए छुप गई थी कि दबंगाइयों ने उन्हें बंद कर उनको आग लगाकर जिंदा जला दिया गया। सिख पुरुषों ने अपनी जान बचाने के लिए पास के ही कुएं में एक के बाद एक छलांग लगा दी लेकिन सभी की दर्दनाक मौत हो गई। [caption id="attachment_355014" align="aligncenter" width="700"] सिख नरसंहार की कहानी सुनकर कांप उठेगी आपकी रूह...[/caption] 84 से पहले जीवंत यह छोटा सा गांव होंद आज बेचिराग बनकर रह गया क्योंकि वहां मौजूद सभी महिलाओं, बच्चों सहित पुरुषों को कत्लेआम कर मौत के घाट उतार दिया गया था। 84 के दंगों को आज पूरे 35 वर्ष बीत चुके है, लेकिन इन खंडहर दीवारों में उन सिखों की चीख-पुकार आज भी देश दुनिया के कानों में गूंज रही है। सरकारें आई और गई, न्यायालय के दख़ल के बाद चंद मुआवज़ा देकर अपना पल्ला जरूर झाड़ लिया लेकिन आज भी इस वीरान पड़े गांव की सुध किसी ने भी नहीं ली। [caption id="attachment_355013" align="aligncenter" width="700"] सिख नरसंहार की कहानी सुनकर कांप उठेगी आपकी रूह...[/caption] 84 के दंगों के नरसंहार के शिकार हुए सिखों की खेती योग्य भूमि पर भी आसपास गांव के स्थानीय लोगों ने कब्ज़ा कर लिया है। अखिल भारतीय सिख स्टूडेंट फेडरेशन संगठन अब यहां सरकार की मदद से एक चेरिटेबल हॉस्पिटल बनवाना चाहता है। होंद-चिल्लर गांव के समीप रहने वाले उन नरसंहार में शामिल हत्यारें अब उम्रदराज़ हो चुके होंगे और उनके ईलाज के लिए दवाइयों की ज़रूरत पड़ेगी। जिन लोगों ने जवानी के जोश में निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या की थी अब वह बूढ़े हो चले होंगे। [caption id="attachment_355012" align="aligncenter" width="700"] सिख नरसंहार की कहानी सुनकर कांप उठेगी आपकी रूह...[/caption] संगठन समाज में एक मैसेज देना चाहता है कि मारने वाले से बचाने वाला सबसे बड़ा होता है। जिन्होंने हमें मौत दी हम उनको जीवन के आख़िरी पड़ाव में जिंदगी देने की पहल करेंगे। 35 सालों के बाद भी यह गांव आबाद नहीं हो सका है, देश का पहला बेचिराग गांव हैं होंद-चिल्लर। आपको बता दें कि 1984 में यह गांव महेंद्रगढ़ की सीमा में आता था लेकिन रेवाड़ी जिला बनने के बाद अब रेवाड़ी जिले का गांव कहलाता है। हर वर्ष 2 नवंबर को कीर्तन दरबार का आयोजन कर लंगर छकाया जाता है ताकि उन बिछुड़ी हुई रूहों को शांति व वाहेगुरु के चरणों में स्थान मिले। इस वर्ष यह आयोजन 2 नवंबर की बजाय 7 नवंबर को आयोजित किया जाएगा। यह भी पढ़ें : मुफ्त में सामान देने से इंकार किया तो कर दी पिटाई, दुकान में की तोड़फोड़ ---PTC NEWS---