राफेल डील: ऑफसेट में देरी बर्दाश्त नहीं, भारत ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट पर लगाया जुर्माना
नेशनल डेस्क: भारत ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन (Dassault Aviation) से 36 राफेल विमान (Rafale Deal) खरीदे थे। इस दौरान ऑफसेट को लेकर भी डील हुई थी। भारत सरकार ने अब ऑफसेट देरी को लेकर कंपनी पर जुर्माना लगाया है।
राफेल विमानों (Rafale Deal) की खरीद के लिए 2016 में एक भारत-फ्रांस के बीच समझौता हुआ दोनों देशों की सरकारों ने सितंबर 2016 में 7.8 अरब यूरो (करीब 8.8 अरब डॉलर) के कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए थे। जिसके अनुसार कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 50 फीसदी ऑफसेट के तहत वापस आना था। दसॉल्ट एविएशन और उसके सहयोगियों सैफरन और थेल्स को सात वर्षों के समय में इसे पूरा करना था।
[caption id="attachment_560627" align="alignnone" width="300"] फाइल फोटो।[/caption]
ऑफसेट पॉलिसी का उद्देश्य ये सुनिश्चित करना होता है कि जब भारत किसी भी देश या विदेशी कंपनी को रक्षा उपकरणों की खरीद का ऑर्डर देता है, तो उसके साथ में ही तकनीक भी ट्रांसफर होनी चाहिए, ताकि देश आगे चलकर रक्षा उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा दे सके साथ ही विदेशी निवेश भी हासिल हो।
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फाइल फोटो।[/caption]
भारत में एक वरिष्ठ रक्षा वैज्ञानिक ने कहा कि डीआरडीओ फ्रांसीसी व्यवसायों से स्टेल्थ क्षमताओं, रडार, एयरोस्पेस इंजन, मिसाइलों के लिए थ्रस्ट वेक्टरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए मटीरियल से संबंधित कई तकनीकों की मांग कर रहा है। मिसाइल-निर्माता एमबीडीए पर जुर्माना लगाया गया है, जो दसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित राफेल जेट के लिए हथियार पैकेज डील प्रदाता है।
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भारत ने दसॉल्ट एविएशन के साथ ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट (Offsets Contract) किया था। इसके साथ ही एमबीडीए के साथ भी एक छोटा कॉन्टैक्ट साइन किया गया, जिसके तहत कॉन्ट्रैक्ट के 50 फीसदी (लगभग 30,000 करोड़ रुपये) को भारत में ऑफसेट या दोबारा निवेश के तौर इस्तेमाल करने की जरूरत थी। हालांकि कितने का जुर्माना लगाया गया है, इस बारे में अभी जानकारी नहीं मिल सकी है।
ऑफसेट को लेकर देरी क्यों हुई?
रक्षा मंत्रालय की नीति के तहत, उपकरण निर्माता कंपनी भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से संबंधित सामान या सेवाएं खरीदकर, भारत के रक्षा उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करके, या उन्नत तकनीक को स्थानांतरित करके ऑफसेट से जुड़े दायित्वों को पूरा कर सकते हैं। मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कि फ्रांसीसी बिजनेसिज का कहना है कि जिन भारतीय कंपनियों को तकनीक का ट्रांसफर होना था, वह मूल दक्षताओं को पूरा नहीं करती हैं।