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अमेरिका से हिसार आए पूर्व नौसेनिक, 28 रुपये की 68 साल पुरानी उधारी के चुकाए 10 हजार

Written by  Vinod Kumar -- December 04th 2021 11:48 AM
अमेरिका से हिसार आए पूर्व नौसेनिक, 28 रुपये की 68 साल पुरानी उधारी के चुकाए 10 हजार

अमेरिका से हिसार आए पूर्व नौसेनिक, 28 रुपये की 68 साल पुरानी उधारी के चुकाए 10 हजार

हिसार: अमेरिका में बेटे के पास रहे पूर्व भारतीय नौसेनिक कॉमोडोर बीएस उप्पल 68 साल बाद एक हलववाई के 28 रुपये देना नहीं भूले। उप्पल 85 साल की उम्र के बाद हिसार लौटे और हलवाई की दुकान पर 28 रुपये के बदले 10 हजार रुपये देकर अपना उधार चुकता किया। नौसेना में कॉमोडोर के पद से रिटायर होने के बाद बीएस उप्पल अपने बेटे के पास अमेरिका चले गए। 85 साल की उम्र में हिसार लौटने पर वो हिसार के मोती बाजार स्थित दिल्ली वाला हलवाई के पास पहुंचे और दुकान के मालिक विनय बंसल को बताया कि तुम्हारे दादा शम्भू दयाल बंसल को मुझे 1954 में 28 रुपये देने थे, लेकिन मुझे अचानक शहर से बाहर जाना पड़ गया और नौसेना में भर्ती होने के बाद यहां आने का कभी मौका नहीं मिला। उप्पल ने शंभु लाल के पोते को बताया कि आपकी दुकान पर मैं दही की लस्सी में पेड़े डालकर पीता था जिसके 28 रुपये मुझे देने थे। फौज में सेवा के दौरान हिसार आने का मौका नहीं मिला और रिटायर होने के बाद मैं अमेरिका अपने बेटे के पास चला गया। वहां मुझे हिसार की दो बातें हमेशा याद रहती थीं। एक तो आपके दादा जी के 28 रुपये देने थे और दूसरा मैं हरजीराम हिन्दू हाई स्कूल में दसवीं पास करने के बाद नहीं जा सका था। आपका उधार चुकाने और अपनी शिक्षण संस्था को देखने के लिए मैं विशेष रूप से से हिसार में आया हूं। इसके बाद बीएस उप्पल ने विनय बंसल के हाथ में दस हजार रकम रखी तो उन्होंने लेने से इनकार कर दिया। तब बीएस उप्पल ने आग्रह किया क‍ि मेरे सिर पर आपकी दुकान का उधार है, इसे कर्ज से मुक्त करने के लिए कृपया यह पैसे स्वीकार कर लें। मैं अमेरिका से विशेष रूप से इस काम के लिए आया हूं। मेरी आयु 85 वर्ष है, कृपया इस राशि को स्वीकार कर लो। इसके बाद दुकान के मालिक विनय बंसल ने मुश्किल से 10 हजार की राशि को स्वीकार किया तो उप्पल ने राहत की सांस ली। उसके बाद अपने स्कूल में गए और बंद स्कूल को देखकर निराश लौट आए। बता दें क‍ि उप्पल उस पनडुब्बी के कमांडर थे जिसने 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के जहाज को डुबो दिया था और अपनी पनडुब्बी तथा नौसैनिकों को सुरक्षित ले आए थे। इस बहादुरी के लिए भारतीय सेना ने उन्हें बहादुरी के नौसेना पुरस्कार से सम्मानित किया था।


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