सरकार तेल के दाम बढ़ाकर जनता का तेल निकालने में लगी है: हुड्डा

By  Arvind Kumar June 28th 2020 07:10 PM

चंडीगढ़। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 21 दिन से लगातार बढ़ रहे तेल के दामों को किसान और आम आदमी के ख़िलाफ़ साज़िश करार दिया है। उन्होंने कहा कि किसानी का ज़्यादातर काम डीज़ल पर निर्भर है। सिंचाई से लेकर ट्रांसपोर्ट तक में सबसे ज़्यादा डीज़ल इस्तेमाल होता है। लेकिन मौजूदा सरकार डीज़ल को पेट्रोल से भी महंगा करने की योजना पर आगे बढ़ रही है। साफ है कि सरकार किसानी को खत्म करना चाहती है। लॉकडाउन में ही लगभग 19 रुपए प्रति लीटर डीजल का दाम बढ़ा है। खेती की लागत और महंगाई दर पर इसका क्या असर हुआ है, इसका पता चलने में समय लगेगा। बीजेपी की जो सरकार 2022 तक किसानों की आय डबल करने का दावा कर रही थी, लगता है कि वो किसान की लागत डबल करने की योजना पर काम कर रही है। डीजल के लगातार बढ़ते दाम के बीच धान का सरकारी रेट सिर्फ 53 पैसे प्रति किलो बढ़ा है, जबकि दो साल से गन्ने के रेट में एक रुपये का भी इजाफा नहीं किया गया। बुआई, कटाई, कढ़ाई और ढुलाई जैसी लागतें बढ़ती जा रही हैं। इस तरह 2022 तक कैसे दोगुनी हो पाएगी किसानों की आय? देश में पेट्रोल-डीजल के दाम में 6 जून से चल रहा इजाफा लगातार 22वें दिन भी जारी है। कृषि अर्थशास्त्री बताते हैं कि कृषि बहुल प्रदेशों पर 6 से 28 जून तक 22 दिन की बढ़ोत्तरी पर कृषि लागत में कम से कम 2000 रुपये प्रति एकड़ बढ़ने का अनुमान है।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पिछले खरीफ सीजन के दौरान रोटावेटर से लेवल करने का खर्च प्रति एकड़ 1320 रुपये था। इस साल यानी 2020 में यह बढ़कर 2080 रुपये प्रति एकड़ हो गया है। डीजल इंजन पंपिंग सेट से पानी चलाने का रेट पिछले साल 150 रुपये प्रति घंटा था, जो अब बढ़कर 220 रुपये हो गया है। इसकी बड़ी वजह डीजल का बढ़ता दाम है। एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स के जानकार कहते हैं कि डीजल के रेट में वृद्धि से कृषि पर पिछले सालभर के असर की बात करें तो इस साल औसतन 30 फीसदी लागत बढ़ जाएगी। बढ़ती कीमतों का असर सिर्फ सिंचाई पर ही नहीं, बल्कि खाद के दाम पर भी पड़ने वाला है।

धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2019-20 में 1815 रुपये प्रति क्विंटल था, जिसे 2020-21 में बढ़ाकर 1868 रुपये किया गया है. इसका मतलब ये है कि खरीफ की मुख्य फसल का दाम सरकार ने एक साल में सिर्फ 53 पैसे प्रति किलो की दर से बढ़ाया है। मक्के का एमएसपी 2019-20 में 1760 रुपये प्रति क्विंटल था, जिसे 2020-21 में बढ़ाकर 1850 रुपये किया गया है। यानी 90 पैसे प्रति किलो। जब लागत इतनी बढ़ जाएगी तो दाम में 90 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि पर किसान को क्या हासिल होगा? ऊपर से हरियाणा, बिहार और एमपी जैसे राज्यों में तो किसान 670 से 1100 रुपये क्विंटल के रेट पर ही इसे बेचने को मजबूर हैं। यूपी और हरियाणा जैसे प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य की बात करें तो यहां पिछले दो सीजन (2018-19 और 2019-20) के दौरान गन्ने के दाम में एक रुपये प्रति क्विंटल की भी वृद्धि नहीं हुई है।

तेल के दामों का सीधा कनेक्शन महंगाई से है। अगर तेल के दाम बढ़ेंगे तो ट्रांसपोर्ट किराया, परिवहन, आवागमन, व्हीकल चलाना और उत्पादन महंगा हो जाएगा। इसके चलते हर चीज़ के दाम बढ़ेंगे। सरकार तेल के दाम बढ़ाकर जनता का तेल निकालने में लगी है। महामारी और मंदी के दौर में सरकार लोगों को राहत देने की बजाए महंगाई की मार मारने में लगी है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार लोगों से कई गुना टैक्स वसूल रही है और कर्ज़ भी कई गुना ले चुकी है। बावजूद इसके ग़रीब, मध्यम वर्ग, किसान, दुकानदार या कारोबारी, किसी वर्ग को कोई आर्थिक राहत नहीं दी जा रही है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हमारे कार्यकाल में तेल सबसे सस्ता था, क्योंकि उसपर टैक्स कम थे। अगर हरियाणा की बात की जाये तो हमारे कार्यकाल में दूसरे राज्यों के लोग भी यहां से तेल डलवाना पसंद करते थे। बॉर्डर के हर पेट्रोल पंप पर लिखा होता था कि ये हरियाणा का पहला या आख़िरी पेट्रोल पंप है। ताकि, लोगों को पता चल जाए कि यहां सस्ता तेल मिलेगा। क्योंकि हमारे कार्यकाल में तेल पर वैट 9 प्रतिशत था, जो बीजेपी राज में बढ़कर दोगुना हो गया है। इसलिए हरियाणा में भी पेट्रोल और डीज़ल दोनों के दाम 80 रुपये प्रति लीटर तक पहुंचने वाले हैं। हुड्डा ने तेल की बढ़ी क़ीमतों और टैक्स की मनमानी दरों का पुरज़ोर विरोध किया।

Bhupendra Singh Hooda protested against increased prices of petrol and diesel

उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार को वैट की दरें कम करके फौरन लोगों को राहत देनी चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आज पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों को कम करके अगस्त 2004 के स्तर पर लाया जाना चाहिए। क्योंकि 2004 की तरह आज भी कच्चे तेल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल के करीब है। अगस्त 2004 में पेट्रोल 36.81, डीज़ल 24.16 रुपये प्रति लीटर और एलपीजी सिलेंडर 261.60 रुपये का था। लेकिन आज पेट्रोल-डीज़ल करीब 80 रुपये और सिलेंडर करीब 600 रुपये में बेचा जा रहा है। कांग्रेस कार्यकाल में ये इतना रेट तब भी नहीं था जब मई 2014 में कच्चे तेल की कीमत 107 डॉलर प्रति बैरल थी। तब भी पेट्रोल 71 रुपये और डीज़ल 55 रुपये प्रति लीटर था। लेकिन आज कच्चे तेल की क़ीमतें आधी से भी कम हो चुकी हैं। बावजूद इसके तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। हुड्डा ने मांग की कि प्रदेश और केंद्र दोनों सरकारें अपना टैक्स कम करें, ताकि कच्चे तेल की घटी क़ीमतों का फ़ायदा आम आदमी को मिल सके।

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