ऊर्जा मामलों में आत्मनिर्भरता की सीढ़ी बन सकते हैं बायोगैस प्लांट, जानिए खासियतें

By  Arvind Kumar July 7th 2020 06:41 PM

हिसार/चंडीगढ़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा की घड़ी को अवसर में बदलने और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर बनने का जो आह्वान देश की जनता से किया है उस मंजिल को पाने की दिशा में हिसार के बरवाला खंड के नया गांव में स्थापित किया गया बायो गैस प्लांट महत्वपूर्ण सीढ़ी साबित हो सकता है। हाल ही में इस प्लांट के उद्घाटन अवसर पर हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला भी इस बायो गैस प्लांट की तर्ज पर प्रदेश के हर खंड के कम से कम एक गांव में इस प्रकार का प्लांट लगाने का आदेश देकर इसके महत्व को दर्शा चुके हैं। सरकार के अनुसार तेल और गैस का आयात कम करने के लिए देश को बायोगैस सेक्टर में आत्मनिर्भर बनाने पर काम करना जरूरी है।

ग्रामीण अंचल में गोबर को ठिकाने लगाना और इसके कारण गांव में गंदगी न फैलने देना सदियों से पंचायत व प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहा। लेकिन यदि गांव में घर की रसोई का गैस चूल्हा गांव के ही पशुओं के गोबर से बनाई गैस से चलने लगे तो क्या कहेंगे, ताज्जुब ही ना। लेकिन यह बात सौ फीसद सच साबित की है हिसार जिला प्रशासन ने। जिला ग्रामीण विकास अभिकरण ने गोबरधन योजना के तहत बरवाला क्षेत्र के नया गांव की ग्राम पंचायत के साथ मिलकर गांव में एक अत्याधुनिक गोबर गैस संयंत्र लगाया जिससे न केवल पूरे गांव की रसोई में पाइप लाइन के माध्यम से गोबर गैस की सप्लाई मिलनी शुरू हो गई है, बल्कि इस प्रोजेक्ट से जिला हिसार को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलने का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है।

Bio Gas plants can become the ladder of self-sufficiency in energy matters

यहां बायो गैस प्रोजेक्ट के तहत गांव के गोबर को सीवेज, किचन व एग्री वेस्ट को बायो गैस प्लांट में ट्रीट करके पूरे गांव को बिजली, बायोगैस व खेतों को खाद व पेयजल के लिए आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इससे पूरे गांव को चकाचक तो बनाया ही जा सकता है बल्कि हर प्लांट पर 50 लोगों को रोजगार भी दिया जा सकता है। इस बायोगैस प्रोजेक्ट का भ्रमण करने के लिए देश ही नहीं वरन विदेशों से भी कई टीमें आ चुकी हैं।

पुरातत्व-संग्रहालय एवं श्रम-रोजगार राज्यमंत्री अनूप धानक का कहना है कि लगभग 90 लाख रुपये की लागत से बने इस विशाल गोबर गैस संयंत्र के कारण गांवों में गोबर व गंदगी का स्थाई समाधान होगा, ग्रामीणों को घर-घर तक सस्ती गैस रसोई के लिए मिलेगी तथा युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। इस प्लांट के लगने से और खाना बनाने के लिए गैस मिलने से महिलाओं को चूल्हे के धुएं से भी मुक्ति मिलेगी। गोबर गैस प्लांट शुरु हो जाने के बाद ग्रामीणों को गोबर फैंकने और ढोने के झंझट से भी छुटकारा मिलेगा। ग्राम पंचायत स्वंय घर-घर से गोबर खरीदेगी जिससे गांव में स्वच्छता रहेगी और ग्रामीणों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

Bio Gas plants can become the ladder of self-sufficiency in energy matters

ये हैं गोबर गैस संयंत्र के फायदे:-

एलपीजी की तरह रसोई में प्रयोग करना आसान व सुरक्षित।

दुर्गंध रहित गैस की आपूर्ति।

एलपीजी से 25 फीसदी ज्यादा तेज, इसलिए समय की बचत।

डीजल व इंडस्ट्रियल भट्टी में भी आसानी से प्रयोग।

महिलाओं को सिर पर गोबर उठाकर गांव से बाहर डालकर आने वाली परेशानी से मुक्ति मिलेगी

गोबर से उत्पन्न होने वाली गंदगी और बीमारियों पर भी रोक लगेगी।

गांव के युवाओं को काम की मिलेगी प्राथमिकता।

बायो खाद के ये हैं लाभ:-

पौधों के लिए जरूरी सभी 113 तत्व भरपूर मात्रा में विद्यमान।

खेतों में पानी के साथ तरल रूप में भी दी जा सकती है।

बिना डीएपी व यूरिया के प्रयोग किए उपज दोगुनी व 100 फीसद आर्गेनिक।

सुखाकर बिजली बनाने पर खर्चा मात्र 2 रुपये प्रति यूनिट।

यह होगी प्रक्रिया:-

- प्लांट के लिए ट्रैक्टर-ट्राली खरीदा जाएगा, जो गांव में घर-घर जाकर गोबर एकत्र करेगा।

- गोबर के लिए ग्रामीणों को 10 पैसे प्रति किलोग्राम की दर से भुगतान किया जाएगा।

- प्लांट में गोबर से बनने वाली गैस को पाइपलाइनों से 10 रुपये क्यूबिक मीटर की दर से गांव के घर-घर पहुंचाया जाएगा।

- प्रत्येक कनेक्शन पर मीटर लगवाया जाएगा, जबकि आइएसआइ मार्का लगा बर्नर ग्रामीणों को खुद लगाना होगा।

- प्लांट से गैस मिलने पर ग्रामीणों का गैस पर होने वाला खर्च लगभग एक-तिहाई रह जाएगा।

- प्लांट से सामान्य खाद के मुकाबले पांच गुना अधिक गुणवत्ता की खाद निकलेगी, जिसे 800 रुपये टैंकर की दर से किसानों को बेचा जाएगा।

---PTC NEWS---

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