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Himachal : पहाड़ों का सीना छलनी कर लिखी विकास की इबादत, बनने लगी विनाश, मनुष्य जीवन पर टूटने लगे पहाड़

पहाड़ों का सीना छलनी कर लिखी गई विकास की इबादत अब मनुष्य जीवन पर भारी पड़ने लगी है। दरकते पहाड़ विकास के नाम पर अब विनाश लीला कर रहे है।

Reported by:  PTC News Desk  Edited by:  Rahul Rana -- August 21st 2023 11:04 AM
Himachal : पहाड़ों का सीना छलनी कर लिखी विकास की इबादत, बनने लगी विनाश, मनुष्य जीवन पर टूटने लगे पहाड़

Himachal : पहाड़ों का सीना छलनी कर लिखी विकास की इबादत, बनने लगी विनाश, मनुष्य जीवन पर टूटने लगे पहाड़

शिमला : पहाड़ों का सीना छलनी कर लिखी गई विकास की इबादत अब मनुष्य जीवन पर भारी पड़ने लगी है। दरकते पहाड़ विकास के नाम पर अब विनाश लीला कर रहे है। पहाड़ों के साथ जिंदगियां तबाह हो रही है। प्रकृति व मनुष्य के बीच का ये संघर्ष सदियों से चला आ रहा है। जब - जब मनुष्य ने अपनी हदों को पार किया है प्रकृति ने उसको बौनेपन का अहसास करवाया है। आज भी करवा रही है। लेकिन मनुष्य है कि जान कर भी अनजान बना बैठा है। विद्युत परियोजनाओं के नाम पर ब्लास्टिंग, टनल, खनन का ये परिणाम है जिसने पहाड़ों को खोखला कर दिया है, रही सही कसर बेतरतीब निर्माण ने निकाल दी है।


देश को पालने वाली नदियों में से अधिकतर का उदगम ही हिमालय से होता है। जहां विकास के नाम पर छोटे-बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट लगाए गए। बिना सोचे समझे सरकारों ने इन प्रोजेक्ट जो लगाने की अनुमति दे दी। जो नियमों कानूनों को ताक पर रखकर पहाड़ों के दोहन कर रहे हैं। ये पहाड़ों की नींव को खोखला कर चुके है। ग्लेशियर पिघल रहे है। भारी बारिश के साथ पहाड़ों से पत्थरों की बरसात हो रही है। अकेले किन्नौर में सतलुज नदी के बेसिन पर ही 22 बिजली प्रोजेक्टों का निर्माण किया गया है। 

नेता हादसों के बाद मुआयना करने जरूर जाते है। मृतकों के परिजनों के लिए मुआबजा एलान भी कर आते है। लेकिन हादसों के पीछे असल वजह को जाने बिना कुछ दिनों में सबकुछ भूल जाते है। नेता ही क्यों सभी लोग हादसों को कुछ ही दिनों में भुला देते है। हां ये भयानक हादसे जो इनमें अपनों को खो देते है उनके लिए ताउम्र कभी न भरने वाले जख्म दे जाते है। आजकल फिर से हादसों से हिमाचल हिल गया है। शिमला, सोलन, मंडी, कुल्लू मनाली , कांगड़ा की ताज़ा तस्वीरें बिचलित करती हैं। 

इस मर्तबा मानसून की बरसात ने साढ़े तीन सौ से करीब जिंदगियो को छीन लिया है। थोड़ा पीछे नज़र घुमाएं तो किन्नौर जिले के बटसेरी में पहाड़ टूटने से नौ सैलानियों की मौत हो गई थी। 12 जुलाई 2021 को कांगड़ा जिले के शाहपुर के रुलेहड़ गांव में भूस्खलन से 10 लोग मौत के मुंह में समा गए। 12 अगस्त 2017  पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोटरोपी में भूस्खलन में 49 की जान चली गई। 23 जुलाई 2015 को चट्टान गिरने से बस अनियंत्रित होकर पार्वती नदी में गिरी, 23 लोगों की मौत हो गई। 18 अगस्त 2015 को मणिकर्ण के ऐतिहासिक गुरुद्वारा में चट्टान गिरी, आठ की मौत हो गई।18 अगस्त 2010 मंडी जिले के बल्ह के हटनाला में भूस्खलन से एक ट्रक खाई में जा गिरा 45 लोगों की मौत हो गई। 

ये हादसे सिर्फ मृतकों की लाशों पर राजनीति तक सीमित न रहे तो अच्छा है बल्कि ऐसे हादसों से सिख लेने की ज़रूरत है। ताकि भावी पीढ़ियों को हम विनाश की इस लीला से बचा सकें। यदि अब भी व्यवस्था व सरकारें ने चेती तो मौत का ऐसा तांडव बद्दस्तूर जारी रहेगा। 

- PTC NEWS

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